ओम प्रयास/हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में बहुत से प्राचीन सिद्ध पीठ स्थल है जिनकी अपनी-अपनी मान्यता हैं. हरिद्वार का प्राचीन नाम हर द्वार यानि भगवान भोलेनाथ का द्वारा है. यहां भोले बाबा के बहुत से सिद्ध पीठ मंदिर है जिनका वर्णन धार्मिक ग्रंथो में विशेष तौर पर उनकी मान्यताओं और शुभ फल देने को लेकर किया गया है. आज हम आपको हरिद्वार में स्थित भगवान शंकर के एक ऐसे ही प्राचीन स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका अपने आप में बड़ा महत्व है.
विल्व पर्वत पर है विल्वकेश्वर महादेव मंदिर
हम हरिद्वार में स्थित भगवान भोलेनाथ के जिस चमत्कारी और सिद्ध पीठ स्थल के बारे में बात कर रहे हैं वहां सावन के महीने में एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से शादी विवाह हो जाते हैं. कहा जाता है कि इस जगह के नाम पर श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान भोलेनाथ की पूजा पाठ और व्रत आदि करने का विशेष महत्व है. हरिद्वार में स्थित विल्व पर्वत पर भोलेनाथ का प्राचीन विल्वकेश्वर महादेव मंदिर है जहां भोलेनाथ के निमित्त पूजा पाठ आदि करने से शादी होने की धार्मिक मान्यता है. इस स्थान पर भोलेनाथ का प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग है.
विल्व के पत्तों का पूजा में है विशेष महत्व
हरिद्वार में विल्व पर्वत पर स्थित विल्वकेश्वर महादेव मंदिर की जानकारी देते हुए पंडित श्रीधर शास्त्री ने लोकल 18 को बताया की भोलेनाथ का यह मंदिर प्राचीन और सिद्ध पीठ स्थल है. हरिद्वार में पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में स्थित बिल्वकेश्वर धाम अत्यंत सुंदर और शांति प्रदान करने वाला है. भोलेनाथ के इस प्राचीन सिद्ध पीठ स्थल पर विल्व के पत्तों से भोलेनाथ की पूजा करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता है.
भोलेनाथ को जल चढ़ाने से हो जाती है शादी
मान्यताओं के अनुसार जिनकी शादी ना हो रही हो यदि उनके द्वारा भोलेनाथ के इस मंदिर में एक लोटा जल चढ़ाने और भगवान भोलेनाथ के निमित्त पूजा पाठ आदि करने पर उनकी शादी हो जाती है. साथ ही बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर श्रद्धा भक्ति भाव से भोलेनाथ की पूजा अर्चना करता हैं वह पूरी हो जाती हैं.
भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती ने यहीं की थी तपस्या
धार्मिक कथाओं के अनुसार भोलेनाथ का यह प्राचीन स्थान माता पार्वती और भोलेनाथ के विवाह से जुड़ा हुआ है. माता पार्वती ने भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए इसी स्थान पर अपने पिता से छिपकर 3 हजार साल तक तपस्या की थी. यहां बिल्व पत्र का पेड़ स्थित है जिसकी अपनी मान्यता है. कहते हैं भोलेनाथ के प्राचीन शिवलिंग के पास जो पेड़ स्थित है वहीं बैठकर माता पार्वती ने तपस्या की थी. इस दौरान कई बार भोलेनाथ ने माता पार्वती की परीक्षा भी ली थी लेकिन माता पार्वती तपस्या करती रहीं. इसी स्थान के पास एक प्राचीन कुंड भी है जहां पार्वती स्नान किया करती थीं. कहा जाता है की माता पार्वती ने यह कुंड अपने हाथ के कड़े से बनाया था.
FIRST PUBLISHED : July 4, 2024, 20:09 IST
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