शिमला. शिमला के सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज को वाइसरीगल लॉज के नाम से भी जाना है. यह इमारत ब्रिटिश काल के दौरान बनी और लंबे समय तक वाइसरॉय और गवर्नर जनरल का आवास रही है. इमारत का निर्माण और डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुकार हेनरी इरविन द्वारा किया गया.
इमारत में रहने वाले पहले वाइसरॉय तथा गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन थे, जो 1884 से 1888 तक भारत के वायसरॉय रहे थे. यह इमारत 6 दशकों तक वायसरॉय और गवर्नर जनरल का आवास रही. आजादी के बाद इमारत को राष्ट्रपति आवास का नाम दिया गया. इसके बाद 1965 में इसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी में तब्दील कर दिया गया.
लॉर्ड लिटन ने चयनित किया था स्थान
वरिष्ठ पत्रकार रजनीश बताते हैं कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज की इमारत ऐतिहासिक इमारत है और इसका इतिहास 136 वर्ष पुराना है. इमारत का कार्य 1886 में शुरू हुआ और 1888 में बन कर तैयार हो गई. ब्रिटिश काल में इमारत लंबे समय तक यह भारत के वाइसरॉय और गवर्नर जनरल का निवास स्थान रही. यह भवन शिमला की ऑब्जरवेटरी हिल पर बनाया गया है, जिसका चयन लॉर्ड लिटन द्वारा किया गया था. वह 1876 से 1880 तक भारत के वाइसरॉय रहे थे. इमारत में आजादी से पहले देश की कई महत्वपूर्ण घटनाएं भी घटित हुई है.
इस इमारत में हुआ था शिमला सम्मेलन
14 जून 1945 को वाइसरॉय लॉर्ड वेवल ने रेडियो प्रसारण के माध्यम से शिमला सम्मेलन की घोषणा की. 25 जून से 14 जुलाई तक सम्मेलन हुआ, जो असफल रहा. सम्मेलन में मौलाना आजाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, राजगोपालाचारी सहित कई लोग शामिल हुए. हालांकि, महात्मा गांधी शिमला में होते हुए भी सम्मेलन में शामिल नहीं हुए. इसके अलावा मार्च 1946 में भारतीयों को अंतिम सत्ता सौंपने को लेकर ब्रिटिश कैबिनेट भारत आया. 5 से 12 मई 1946 के बीच अंग्रेजी शासकों, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच कांफ्रेंस हुई, जिसमे मुस्लिम लीग और कांग्रेस कई मुद्दों पर सहमत नहीं हुई. यह कॉन्फ्रेंस भी असफल रही, जिससे देश का विभाजन लगभग तय हो गया. भारत के पूर्ण स्वराज के लिए भी इसी भवन में रूपरेखा तैयार की गई थी.
1965 में स्थापित हुआ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज
1947 में देश की आजादी के बाद वाइसरॉय लॉज की संपति राष्ट्रपति के अधीन आ गई, जिसके बाद इमारत का नाम बदल कर राष्ट्रपति निवास कर दिया गया. 6 अक्टूबर 1964 को रजिस्ट्रेशन और सोसायटी एक्ट-1860 के तहत भारतीय उच्च अध्यन सोसायटी का पंजीकरण हुआ. इसके बाद 1965 में उस समय के राष्ट्रपति प्रो. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इमारत को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के सुपुर्द कर दिया. भारत के दूसरे उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन सोसायटी के अध्यक्ष बने और प्रो. निहार रंजन रे संस्थान के पहले निदेशक बने.
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FIRST PUBLISHED : June 27, 2024, 11:35 IST