नीरज कुमार/बेगूसराय : बिहार में किसानों की मेहनत और संसाधनों की बचत के लिये सरकार तमाम तरह की योजनाओं का संचालन कर रही है. ऐसे में ढेर सारी योजनाएं किसानों के लिए प्रगति का द्वार खोलने का काम करती है. आपने कई जगहों पर हरे-भरे खेतों में चमकती पॉलीथीन देखी होगी.
खेतों के बीच इस चमकती पॉलीथीन को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है और मन में ये सवाल आता है कि भला खेतों में पॉलीथीन क्या काम है… इसका जवाब है खेतों में ये पॉलीथीन… मल्चिंग है. बिहार में सरकारी स्तर से भी प्लास्टिक मल्चिंग तकनीक से खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए विभाग 50 फीसदी तक अनुदान दे रही है. लेकिन क्या आपको पता है? प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे से ज्यादा नुकसान भी होते हैं. यह जानकर भले ही आपकों हैरानी होगी. लेकिन, कृषि विज्ञान केंद्र की रिसर्च रिपोर्ट आपकी आंखें खोल सकती है.
खेतों के लिए खतरनाक साबित हो रहा प्लास्टिक मल्चिंग
चेरिया बरियारपुर प्रखंड क्षेत्र के प्रगतिशील किसान प्रो. रामकुमार सिंह ने बताया पिछले 5 वर्षों से मल्चिंग का प्रयोग कर है. इसके फायदे दिखाई देते हैं ? इन्होंने आगे बताया इससे खेतों में नमी बने रहने के साथ ही उत्पादन भी बेहतर होने की बात बताई. बिहार में उद्यान विभाग प्लास्टिक मल्चिंग पर 50 फीसदी सब्सिडी दे रही है. ऐसे में लोकल 18 ने कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंशुमान द्विवेदी से प्लास्टिक मल्चिंग को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. वैसे ही प्लास्टिक मल्चिंग के भी दो पहलू होते हैं. फायदा और नुकसान दोनों होता है.
किसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक मल्चिंग का भी यही हाल है. प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे हैं तो दुष्प्रभाव भी है. एक कृषि अनुसंधान रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक मल्चिंग के कारण देश के कई हिस्सों की मिट्टी में काफी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक पायी गई है. पर्यावरण संगठन टॉक्सिक्स लिंक द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आयी है. बागवानी और खेती के लिए किसान प्लास्टिक मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं.
जो यह संकेत देते हैं कि बड़े पैमाने पर मल्च शीट के उपयोग होने के कारण यह दूषित हुए हैं. इसके अलावा अध्ययन में पाया गया कि प्लास्टिक मंच में इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक आम तौर कर कम घनत्व वाला होता है. यह बॉयोडिग्रेडेबल नहीं होता है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पहली बार मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक का पता चला है. वैज्ञानिकों ने टेस्ट में लगभग 80 प्रतिशत लोगों में छोटे कण पाए हैं.
मल्चिंग के लिए दूसरे विकल्प में इस तकनीक का करें प्रयोग
कृषि वैज्ञानिक अंशुमान द्विवेदी ने आगे बताया कृषि प्रणाली में मल्चिंग के लिए दूसरे विकल्प की बात करें तो किसानों को धान का प्वाल, केकल का पत्ता या फिर सूखे पत्ते का इस्तेमाल करना चाहिए . मल्चिंग के लिए दूसरे विकल्प के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर किसान आ सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : May 24, 2024, 22:38 IST