गया. सनातन धर्म में पीतांबरी वस्त्र का बहुत महत्व है. ये एक ऐसा वस्त्र है जो जीवन के साथ बनता है लेकिन उपयोग जीवन के बाद होता है. एक ऐसा वस्त्र है जिसे जो व्यक्ति बुनता है, वह जीवित रहते इसे पहनता नहीं. और जो पहनता है, वह खुद देखता नहीं. बिहार का पवित्र स्थल गयाजी में ये बनता है.
बिहार के मिनी मेनचेस्टर के नाम से मशहूर मानपुर के पटवा टोली और शिवचरण लेन में बड़े पैमाने पर पीतांबरी बनाया जाता है. गयाजी पूरी दुनिया में न केवल पितरों की मोक्ष स्थली है, बल्कि यहां कई ऐसे उद्योग भी हैं जो राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पहचान दिलाते हैं. पटवा टोली बिहार में पीतांबरी बनाने वाला एक मात्र स्थान है. यहां की पीतांबरी बिहार के साथ-साथ झारखंड, पश्चिम बंगाल के लोगों की जीवन की अंतिम यात्रा में साथ निभाता आ रहा है.
तांती समाज संभाले है परंपरा
पटवा टोली में सिर्फ 2-3 लोग ही बचे हैं जो हैंडलूम से पीतांबरी बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. बाकी यहां अब पावरलूम से ही ये वस्त्र बनाते हैं. कुछ वर्ष पहले तक यहां 30-40 लोग हैंडलूम से पीतांबरी बनाने का काम करते थे. अधिक मेहनत और कम मुनाफे के कारण इससे लोग दूर होते जा रहे हैं. यहां तांती समाज के कुछ लोग हैं जो पीतांबरी बनाने के काम को संभाले हुए हैं. एक पीतांबरी बनाने में इन्हें दो दिन का समय लगता है और तीन रुपए लागत आती है.6 रुपये थोक भाव में इसकी बिक्री होती है. बुनकरों को 3 रुपए की बचत होती है.
पावरलूम पीतांबरी में वो बात नहीं
यहां पावरलूम से भी पीतांबरी तैयार होता है लेकिन उसकी क्वालिटी हैंडलूम के तुलना में कम रहती है. यहां तैयार पीतांबरी बिहार समेत, झारखंड, बंगाल, ओडिशा तक भेजी जाती है. पीतांबरी के कारोबार से जुड़े बुनकर सत्येन्द्र कुमार पान बताते हैं हैंडलूम से इक्का दुक्का लोग ही पीतांबरी बनाते हैं. सरकार का ध्यान हैंडलूम पर नहीं है. हमें लोन भी नहीं मिलता. इसलिए इस व्यवसाय को हम नहीं बढ़ा पा रहे हैं. इस व्यवसाय से रोज 300-400 रुपये की आय होती है.
पावरलूम का परिवार
गया के इस मोहल्ले में हैंडलूम के अलावा दो सौ से अधिक पावर लूम मशीन पर दशकों से केवल पीतांबरी बनाने का काम हो रहा है. इन मशीनों पर प्रतिमाह औसतन डेढ़ लाख पीस पीतांबरी बनाए जा रहे हैं. ये सूती, पॉलिएस्टर और खधड़िया क्वालिटी के होते हैं. इसकी कीमत थोक बाजार में पांच से 50 रुपये प्रति पीस है. पटवा टोली में 12 हजार पावर लूम पर रोज 10 हजार से अधिक कामगार काम कर रहे हैं. इनके अलावा रंगरेज, धागा छटाइकर्मी, कपड़ा पॉलिशकर्मी सहित अलग-अलग कैटेगरी से जुड़े करीब 10 हजार से अधिक कामगार भी इस उद्योग से जुड़े हैं. इस कारोबार से करीब 25 हजार से अधिक परिवार जुड़े हैं जिनका भरण-पोषण हो रहा है.
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FIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 19:46 IST