बेहद रहस्यमयी है यह गुफा, 16 बार श्वेत गंगा को पार कर पहुंचते हैं श्रद्धालु, दुनियाभर में जानी जाती है इसकी विशेषता

रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य की पहचान अलग अलग क्षेत्रों में अलग-अलग वजहों से होती है. यहां की लोक कला और संस्कृति का जिक्र विश्व स्तर पर होता है. छत्तीसगढ़ की कई खास बातें हैं. इन्हीं खास बातों में यहां का एक गुफा भी है जो सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यह गुफा भारत की पहली और एशिया की दूसरी सबसे बड़ी गुफा मानी जाती है. छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ स्थित मंडीप खोल गुफा है. जो केवल साल में एक बार अक्षय तृतीया के बाद सोमवार को भक्तो के लिए खोली जाती है. भगवान भोलेनाथ को समर्पित इस गुफा के दर्शन के लिए हाल ही में प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने से हजारों श्रद्धालु पहुंचे हुए थे.

दुर्गम रास्ते, घने जंगल और नदी नालों को पार कर श्रद्धालु मंडीप खोल गुफा पहुंचते हैं. यहां गुफा राजनांदगांव जिले से अलग होकर बने जिला यानी खैरागढ़-छुईखदान-गंड़ई में स्थित है, मंडीप खोल गुफा को लेकर कई रियासत कालीन मान्यताएं जुड़ी है. बैगा गुणिराम और पुजारी विष्णु के अनुसार वर्षो से ठाकुरटोला के जमींदार इस गुफा को अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले सोमवार को केवल एक दिन के लिए विधिवत पूजा अर्चना कर खोलते हैं, चट्टान हटाने से जंगली जानवरों से बचाव के लिए पहले हवाई फायर भी किया जाता है, गुफा में पहला प्रवेश जमींदार परिवार के लोग ही करते हैं और वहां स्थित शिवलिंग सहित अन्य देवी देवताओं की विधि विधान से पूजा अर्चना कर क्षेत्र की खुशहाली की कामना करते हैं.

छत्तीसगढ़ में इन दिनों गर्मी का कहर जारी है ऐसे में जब भक्तों ने मंडीप खोल गुफा में प्रवेश किया तो उन्हें शीतलता का अहसास हुआ. यह भी एक तरह का रहस्यमय किस्सा है. सकरे मुख वाली इस गुफा के अंदर अनेक बड़े कक्ष है. कुछ साल पहले पुरातत्व विभाग द्वारा इस गुफा का सर्वेक्षण किया गया था जिसमे यह पाया गया कि यह गुफा देश की सबसे लंबी और एशिया की दूसरी सबसे लंबी गुफा है तथा इसके इतिहास में काफी रहस्य छिपे हुए हैं जिन पर अभी अनुसंधान होना बाकी है.

भौगोलिक दृष्टिकोण से मंडीप खोल गुफा मैकल पर्वत माला के खूबसूरत हिस्से में स्थित है यहां पहुंचना सरल नही है, क्योंकि गुफा तक पहुंचने का कोई स्थाई रास्ता नहीं है, पैलीमेटा या ठाकुरटोला तक ही सड़क मार्ग मौजूद है इसके बाद श्रद्धालुओं को घोर जंगल से होते हुए पगडंडियों की सहारे आगे बढ़ते हैं. इसके अलावा उन्हें रास्ते में पड़ने वाले नदी और नालों को पार करना पड़ता है, गुफा के पास स्थित कुंड से निकलने वाली श्वेत गंगा को श्रद्धालु रास्ते में 16 बार पार करते हैं और बाबा भोलेनाथ के दर्शन पाते हैं.

Tags: Chhattisgarh news, Local18, Religion 18

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