फिर उठी विरासत टैक्स की मांग, अमीरों की जेब काटकर गरीबों की झोली भरने का सुझाव, जानिए अब किसने की ये वकालत

हाइलाइट्स

भारत में बढ़ती असमानता को दूर करने के लिए रिसर्च पेपर में सुझाव दिया गया. 10 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 33% विरासत टैक्स लगाने की जरूरत है. अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी की अगुवाई में तैयार एक शोध-पत्र में यह सुझाव दिया गया है.

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के बीच देश में विरासत टैक्स को लेकर काफी बवाल हुआ और ये बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया. कांग्रेस नेता और राहुल गांधी के सलाहकार सैम पित्रोदा ने जब इनहेरिटेंस टैक्स (विरासत कर) की बात कही तो बीजेपी, कांग्रेस पर हमलावर हो गई. ये मुद्दा शांत ही हुआ था कि अब फिर से विरासत टैक्स की मांग उठने लगी. भारत में बढ़ती असमानता को दूर करने के लिए 10 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 2 प्रतिशत कर और 33 प्रतिशत विरासत कर लगाने की जरूरत है. अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी की अगुवाई में तैयार एक शोध-पत्र में यह सुझाव दिया गया है. इस रिसर्च पेपर में धन वितरण को लेकर एक व्यापक नजरिया पेश किया गया.

‘भारत में अत्यधिक असमानताओं से निपटने के लिए संपत्ति कर पैकेज के प्रस्ताव’ शीर्षक वाले इस रिसर्च पेपर के अनुसार, ‘99.96 प्रतिशत वयस्कों को कर से अप्रभावित रखते हुए असाधारण रूप से बड़े कर राजस्व में वृद्धि की जानी चाहिए.’ इसमें कहा गया है, ‘आधारभूत स्थिति में 10 करोड़ रुपये से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर दो प्रतिशत वार्षिक कर और 10 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति पर 33 प्रतिशत विरासत कर लगाने से मिलने वाला राजस्व सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.73 प्रतिशत का बड़ा योगदान देगा.’

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रिसर्च पेपर की बड़ी बातें

इस शोध-पत्र में कहा गया है कि कराधान प्रस्ताव के साथ गरीबों, निचली जातियों और मध्यम वर्ग को समर्थन देने के लिए स्पष्ट पुनर्वितरण नीतियों की जरूरत है. इस प्रस्ताव के मुताबिक, आधारभूत परिस्थिति में शिक्षा पर वर्तमान सार्वजनिक खर्च को लगभग दोगुना करने की संभावना बनेगी. यह पिछले 15 वर्षों में जीडीपी के 2.9 प्रतिशत पर स्थिर रहा है जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में छह प्रतिशत व्यय का निर्धारित लक्ष्य रखा गया है.

यह शोध-पत्र पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के मशहूर अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी, हार्वर्ड कैनेडी स्कूल एवं वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब से जुड़े लुकास चांसेल और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से जुड़े नितिन कुमार भारती ने लिखा है. यह शोध-पत्र कराधान प्रस्ताव पर बड़े पैमाने पर बहस की जरूरत बताते हुए कहता है कि कर न्याय और धन पुनर्वितरण पर व्यापक लोकतांत्रिक बहस से आम सहमति बनाने में मदद मिलेगी.

आर्थिक असमानता को बनाया आधार

भारत में आय और संपत्ति की असमानता को लेकर होने वाली बहस ने पिछले कुछ समय में जोर पकड़ा है. इसके पहले जारी ‘भारत में आय और संपत्ति असमानता 1922-2023’ रिपोर्ट भी कहती है कि भारत में आर्थिक असमानताएं ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई हैं.

इसमें कहा गया है कि इन चरम असमानताओं और सामाजिक अन्याय के साथ उनके घनिष्ठ संबंध को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. रिपोर्ट के लेखकों ने 20 मार्च को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2000 के दशक की शुरुआत से भारत में असमानता लगातार बढ़ती जा रही है. वर्ष 2022-23 में देश की शीर्ष एक प्रतिशत आबादी की आय और संपत्ति में हिस्सेदारी क्रमशः 22.6 प्रतिशत और 40.1 प्रतिशत तक पहुंच गई थी.

इसके मुताबिक, वर्ष 2014-15 और 2022-23 के बीच शीर्ष स्तर की असमानता का बढ़ना संपत्ति के संकेंद्रण के रूप में नजर आया है. यह शोध-पत्र कहता है, ‘वित्त वर्ष 2022-23 में शीर्ष एक प्रतिशत आबादी की आय और संपत्ति में ऊंची हिस्सेदारी अपने उच्चतम ऐतिहासिक स्तर पर रही और यह अनुपात दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है.”

Tags: Business news, Income tax, Income Tax Planning, Rahul gandhi

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