देश में चुनावी माहौल है. पार्टियों से लेकर आम जनता के बीच सरगर्मियां बढ़ गई हैं. ऐसे में आपके आसपास एक से बढ़कर एक रोचक कहानियों की चर्चा होती होगी. आज हम आपको एक दूसरी कहानी सुनाते हैं. दरअसल, चुनावी माहौल में हम सभी राजनीतिक रूप से बेहद प्रभावी रहे परिवारों की कहानी खूब सुनते हैं. पीएम नरेंद्र मोदी अक्सर राजनीति में परिवारवाद पर चोट करते हैं. इसमें सबसे पहला नाम नेहरू-गांधी परिवार का आता है. फिर यह सूची बेहद लंबी होती जाती है. महाराष्ट्र में ठाकरे और पवार परिवार, यूपी में यादव परिवार, बिहार में लालू प्रसाद यादव का परिवार, ओडिशा में पटनायक परिवार, हरियाणा में चौटाल परिवार… न जाने ऐसे कितने नाम हैं.
आज हम दिल्ली से सजे एक प्रमुख राज्य के एक परिवार की कहानी सुना रहे हैं. इस परिवार में 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव से लेकर आज तक न केवल निर्वाचित जनप्रतिनिधि हुए हैं, बल्कि इसके सदस्य राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्री बनते रहे हैं. हम बात कर रहे हैं हरियाणा के पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के परिवार की.
1952 के चुनाव में बने सांसद
हुड्डा परिवार की राजनीतिक जमीन हरियाणा का रोहतक और उसके आसपास का इलाका रहा है. रोहतक 1952 के पहले आम चुनाव के वक्त से ही संसदीय क्षेत्र है. उस वक्त अलग हरियाणा राज्य नहीं बना था. वह पंजाब प्रांत के अधीन आता था. 1952 के पहले आम चुनाव में यहां से चौधरी रणबीर सिंह सांसद चुने गए थे. वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. वह पंजाब और फिर हरियाणा राज्य की सरकारों में मंत्री रहे. वह लंबे समय तक लोकसभा व राज्यसभा सांसद और विधायक रहे. उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ काम किया. फिर उनकी राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी उनके बेटे भूपिंदर सिंह हुड्डा के कंधे पर आई.
बेटे ने देवीलाल जैसे कद्दावर नेता को हराया
रणबीर सिंह रोहतक से 1952 और 1957 में सांसद बने थे. इसके बाद करीब तीन दशक तक इस सीट से कांग्रेस और अन्य दलों के नेता संसद के लिए चुने जाते रहे. फिर 1991 में रणबीर सिंह के बेट चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा यहां से सांसद बने. वह 1996 और 1998 में भी निर्वाचित हुए. उन्होंने तीनों चुनावों में हरियाणा के सबसे बड़े नेता चौधरी देवीलाल को हराया. वर्ष 1999 के चुनाव में वह हार गए लेकिन 2004 में उन्होंने फिर वापसी की. वर्ष 2005 में वह हरियाणा में कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री बने और रोहतक संसदीय सीट से उपचुनाव में उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा विजयी हुए. इस तरह 2005, 2009 और 2014 में दीपेंद्र विजयी हुए. हालांकि 2019 के चुनाव में मोदी लहर की आंधी में वह अपनी सीट नहीं बचा पाए और मात्र 7500 वोटों से चुनाव हार गए. 2024 के चुनाव में एक बार फिर दीपेंद्र को रोहतक से उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना है.
वर्ष 1952 से अब तक 219 तक रोहतक संसदीय सीट पर 17 बार आम चुनाव और दो बार उपचुनाव हुए हैं. इसमें से 12 बार कांग्रेस को जीत मिली है. इन 12 बार में इस सीट से नौ बार केवल हुड्डा परिवार का व्यक्ति विजयी हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : March 15, 2024, 13:24 IST