तनुज पाण्डे/नैनीताल : देवभूमि उत्तराखंड में खेत बेहद समृद्ध है. प्रदेश में करीब 6 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है. इसमें तमाम फसलों से लेकर बगीचे भी शामिल हैं. यहां उगने वाली फसलें स्वाद में लाजवाब होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर होती है. आज हम आपको उत्तराखंड में उगने वाली एक ऐसी ही दाल के बारे में बताने जा रहे हैं जो स्वाद में लाजवाब होने के साथ ही इसका सेवन भी स्वास्थ के लिए बेहद लाभदायक है. उत्तराखंड में मिलने वाली मोठ की दाल प्रोटीन से भरपूर है. स्वाद में लाजवाब होने के साथ ही यह शरीर को कई तरह के पोषक तत्व प्रदान करती है.
नैनीताल के डी एस बी कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ. ललित तिवारी बताते हैं कि मोठ की दाल उत्तराखंड समेत पूरे भारत के गर्म इलाकों में लगभग 1.5 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में पाई जाती है. भारत के अलावा मोठ की दाल ईरान, सोमालिया, सूडान समेत अन्य ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में पाई जाती है. यह एक तरह का मोटा अनाज है.
मांसपेशियों को मजबूत बनाती है ये दाल
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि इस दाल को गर्मी के समय में बोया जाता है और वर्षा ऋतु के आरंभ में काटा जाता है. इसके साथ ही ज्यादा वर्षा होने में इसके खराब होने की आशंका होती हैं. प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि स्वाद में हल्का कसैलापन लिए यह दाल स्वास्थ के लिए रामबाण है. मोठ की दाल सुपरफूड के रूप में अधिक इस्तेमाल की जाती है. प्रोटीन से भरपूर होने के कारण मोठ की दाल मांसपेशियों को मजबूत बनाती है और एनर्जी प्रदान करती है. मोठ की दाल में विटामिन बी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, जो शरीर को स्वस्थ रखता है. इसके अलावा इसमें मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैंगनीज, आयरन, कॉपर, सोडियम और जिंक भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. साथ ही इस दाल की तासीर गर्म है. जो शरीर को गर्मी प्रदान करती है.
पहाड़ी लोगों के फिट होने का राज
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि प्रोटीन से भरपूर होने के कारण मोठ की दाल वजन घटाने वालों के लिए एक बेहतर विकल्प है. यह मसल को बढ़ाती है और अधिक मात्रा में कैलोरी को बर्न करती है. इसके अलावा यह मेटाबोलिक रेट को भी बढ़ाती है. वैसे तो पहाड़ी लोगों के पतले और फिट होने के बहुत से कारण है लेकिन मोठ की दाल भी एक प्रमुख कारण है.
शरीर के लिए है रामबाण
प्रोफेसर तिवारी बताते हैं कि मोठ की दाल शरीर के लिए रामबाण है. यह दाल मलरोधक, शीतल, मध्यकारी और रुचिकारी है. इसके सेवन से पेट के कीड़ों खत्म हो जाते है. यह रक्त-पित्त रोगों को दूर करता है. ज्वर और गैस में लाभप्रद है. इसके साथ ही इसका सेवन क्षय रोग में करना लाभकारी है. इस दाल के पौंधे की जड़ को नहीं खाया जाता है. किसान इस दाल को बाजरे के साथ बोते हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 26, 2024, 14:31 IST
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