अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड की कई ऐसी परंपराएं हैं, जिन्हें आज भी लोग निभाते हुए नजर आते हैं. यहां एक ऐसा गांव है, जहां पुरानी परंपराओं के आधार पर आज भी भोजन बनता है. यहां के नियम इतने सरल नहीं है, जितने आज के समय में है. आइए जानते हैं.
बता दें कि गांव क्षेत्र में कोई भी कार्य होता है, तो घर के अंदर खाना ना बनाकर बाहर ही एक चूल्हा तैयार किया जाता है. इसमें खाना बनाने को लेकर कई नियम पालन किए जाते हैं. जो भी व्यक्ति खाने को बनाता है वह नंगे पैर और धोती पहनता है. और उस दायरे के अंदर कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं जा सकता है. इसके अलावा जब खाना तैयार हो जाता है, तो खाना बनाने वाले व्यक्ति के द्वारा गांव के लोगों को खाना परोसा जाता है. इसमें गांव के लोग नीचे बैठकर खाना खाते हैं. इस खाने को तैयार करने में करीब डेढ़ से 2 घंटे लगते हैं, जिसमें अलग-अलग व्यंजन तैयार किए जाते हैं. इसमें दाल, चावल, सब्जी, पूड़ी आदि अन्य चीज बनाई जाती हैं. इस खाने का स्वाद खाकर लोग अपनी उंगलियां चाटते रह जाते हैं.
आज भी जिंदा है पुरानी परंपरा
खाना बनाने वाले गोपाल दत्त उप्रेती ने बताया कि वो 30 साल से खाना बना रहे हैं. गांव में जो पारंपरिक तरीके से खाना बनाया जाता है, उसमें खाना बनाने वाले को अंदर आत्मा से शुद्ध होने की जरूरत होती है. जो भी खाना तैयार करता है, वह बगैर चप्पल और धोती पहनकर इस खाने को बनाता है. आगे उन्होंने बताया कि पुरानी संस्कृति को वह आगे ले जाना चाहते हैं. आजकल के समय में युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति को भूलते ही जा रहे हैं. उनका मानना है कि अगर इसे जीवित नहीं रखा गया, तो आने वाले समय में यह सभी विलुप्त हो जाएंगी.
नीचे बैठकर खाना खाने की है परंपरा
स्थानीय निवासी हरीश भट्ट ने बताया कि बुजुर्गों के समय की परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. नीचे बैठकर खाना खाने का आनंद कुछ और ही है. क्योंकि, जब हम बैठकर खाना खाते हैं, तो खाना हमारे पूरे शरीर तक पहुंचता है और हमारे कई रोग भी दूर होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 25, 2024, 17:47 IST