पंकज सिंगटा/शिमलाः हिमाचल प्रदेश की संस्कृति विविध है. लोकगाथाओं और लोकगीतों के साथ ही यहां बहुत बड़ा स्थान लोक नृत्य का भी है. लोकगीत और वाद्य यंत्रों की धुनों के माध्यम से अपने इष्ट देवताओं की स्तुति की जाती है. इसी प्रकार का एक नृत्य है, जिसमें सिर पर दीपक रख कर नृत्य किया जाता है. इस नृत्य को दीपक नृत्य कहा जाता है, जो देखने में बेहद ही खूबसूरत और मनमोहक लगता है.
लोकल 18 से बातचीत में वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी ने बताया कि दीपक नृत्य, नृत्य शैली में लोक गायन और वाद्य यंत्रों के माध्यम से किया जाता है, इसके माध्यम से लोग अपने इष्ट देवताओं की पूजा अर्चना करते है. यह नृत्य लोग अपने अपने देवताओं की स्तुति के लिए करते है, जिसमे अधिकतर शिरगुल देवता, बिजट महाराज और अन्य देवी-देवताओं की आराधना की जाती है.
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4 और 8 भुजाओं में जलाए जाते है दिये
हाब्बी ने बताया कि इस नृत्य को सिर पर दीपक जलाकर किया जाता है, कुछ स्थानों पर इसे 4 भुजाओं और कुछ स्थानों पर इसे आठ भुजाओं में प्रस्तुत किया जाता है. इस नृत्य में लोग सर पर जलते हुए दीपक को रख कर, जमीन पर पड़े रुमाल को साष्टांग प्रणाम करके उसे मुंह से उठाते है और आराध्य इष्ट देव की आराधना करते है.
कौन से क्षेत्रों में किया जाता है नृत्य
हाब्बी ने कहा कि यह नृत्य मौजूदा समय में अधिकतर सिरमौर के क्षेत्र में किया जाता है, लेकिन अब इसे जिला शिमला के विभिन्न स्थानों में भी किया जाने लगा है. पुराने समय में सिरमौर रियासत कालसी से शिमला जिला के कई क्षेत्रों तक फैली हुई थी. इस कारण यह भी कहा जा सकता है कि यह नृत्य पूरे महासु क्षेत्र की संस्कृति है. पद्मश्री विद्यानंद सरैक का मानना है कि इस नृत्य का पूरा संबंध देव स्तुति से है और इनके माध्यम से देवताओं की आराधना की जाती है.
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FIRST PUBLISHED : March 6, 2024, 19:54 IST