This saint lived for 103 years by eating tree leaves, used to worship while living in a cave – News18 हिंदी

अनुज गौतम/ सागर.बुंदेलखंड को संतों की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है. ऐसे ही एक सिद्ध संत हरे राम महाराज भी थे. जो घने जंगल में नदी किनारे पत्थर की गुफाओं में रहते थे. वे हनुमान जी के भक्त थे. हरे राम नाम का भजन करते रहते थे. इसलिए हरे राम महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे. महाराज को लेकर यह भी कहा जाता है. वह 27 साल तक अर्जुन के पेड़ की पत्तियां खाकर भक्ति में लीन रहते थे. इसके बाद उन्हें सिद्धियां प्राप्त हुई थी. उन्होंने हमेशा दुखी और असहाय लोगों की मदद की. काम पूरा होने के बाद हरे राम का कीर्तन करवाना पड़ता था. साल 2008 में 103 साल की उम्र में उन्होंने समाधि ली थी.

गधेरी (गंधर्वी) नदी के किनारे हरे राम महाराज जिन गुफाओं में रहते थे. वह पत्थर की गुफाएं आज भी मौजूद हैं. हनुमान जी का मंदिर है. यहां अब श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. इस सिद्ध स्थान के चारों तरफ करीब 8 किलोमीटर की परिधि में कोई गांव आज भी नहीं है. लेकिन, पक्की सड़क का निर्माण होने की वजह से यहां तक पहुंचना सुगम हो गया है. यह स्थान आपचंद की गुफाओं के नाम से प्रसिद्ध है.

पेड़ की पत्तियां खाकर जीवित रहे
इस स्थान के 1008 महामंडलेश्वर घनश्याम दास महाराज बताते हैं कि हरिराम महाराज का वास्तविक नाम जमुना दास था.  8 – 10 साल की उम्र में वह हरदी गांव से इस नदी के किनारे गाय चराने के लिए आते थे. एक दिन उन्होंने देखा कि यहां चट्टानों में पत्थर की गुफाएं हैं. जिन्हें देखने के लिए पास आ गए. इनकी साफ-सफाई की तो एक हनुमान जी की प्रतिमा मिली. इस प्रतिमा को उन्होंने नदी में स्नान कराया और बासी रोटी का भोग लगाया.इसके बाद वे लकड़ी के कोयले से यहां पर राम-राम लिखने लगे.

पत्थर की गुफाएं मौजूद
एक बार भूख लगी तो वह दोपहर में ही जाने लगे तब एक सफेद कपड़े पहने महात्मा ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अब तुम्हें यही रहना है और भजन करना है. महाराज जी वहां रुक गए लेकिन कोई व्यवस्था नहीं थी पेड़ के नीचे सो रहे थे. उन्होंने देखा कि बंदर पेड़ की पत्तियों खा रहे हैं. उन्होंने सोचा कि जब बंदर पत्तियां खाकर हष्ट पुष्ट रह सकते हैं, तो हम क्यों नहीं. इसके बाद उन्होंने अर्जुन के पेड़ की पत्तियां खाना शुरू किया. वे 27 साल तक पत्तियां खाते रहे इसके बाद उनमें सिद्धियां आ गई. इन सिद्धियों को उन्होंने समाज की भलाई में लगाया. 103 साल की उम्र में उन्होंने समाधि ली.

जन्म लेते ही पिता का स्वर्गवास
महाराज को लेकर एक और किवदंती है कहां जाता है कि इनके मां-बाप के पहले कोई संतान नहीं थी. उन्होंने रानगिर माता से प्रार्थना की इसके कुछ महीनों बाद महाराज का जन्म हआ. जन्म के समय ही इनके पिता का स्वर्गवास हो गया. इनका नाम जमनादास रखा गया.7 महीने के बाद इनकी मां. इनको माता रानी केदरबार में छोड़कर आ गई. घर आते ही उन्होंने भी प्राण त्याग दिए. जब गांव के लंबरदार को जानकारी लगी. तो वह उसे बेटे को लेने पहुंच गए. लंबरदार की दो पत्नी थी छोटी पत्नी को कोई औलाद नहीं थी. उन्होंने इस बेटे को उन्हीं को सौंप दिया. जैसे ही बेटे को गोद में दिया तो उनके स्तन से दूध आने लगा. उन्होंने इनको पाला पोसा 8 साल के हुए तो छोटे छोटे बछड़े चराने लगे, फिर गाय लेकर जंगल जाने लगे.

गुफाओं का ऐतिहासिक महत्व
इन पत्थर की गुफाओं का ऐतिहासिक महत्व भी है. यहां पर पुरातत्व विद्वानों ने आदि मानवों के सेल चित्र भी खोजे हैं. जो करीब 10 से 12000 साल पुराने बताए जाते हैं. विभिन्न तरह के सेल चित्र देखने के बाद यह पाया गया कि मानव के विकास के क्रम को समझाने के लिए इन चित्रों को बनाया गया होगा.

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