बांका. बिहार का सिल्क बहुत प्रसिद्ध है. भागलपुरी सिल्क तो आपने सुना ही होगा. लेकिन बांका के इस गांव के बारे में कम जानते होंगे. इसे सिल्क विलेज की कहा जाने लगा है. यहां के घर घर में सिल्क बनाया जाता है. इस काम में पूरा परिवार लगा रहता है. एक साड़ी बनाने में 15 से 20 दिन लगते हैं.
बांका में कई गांव हैं जहां सिल्क और लिलन के कपड़े तैयार किए जाते हैं. लेकिन आज हम आपको यहां के एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जो सिल्क गांव के नाम से जाना जाता है. यहां के बुनकर हैंडलूम पर सिल्क की साड़ियां तैयार करते हैं. इनकी बांका ही नहीं पूरे प्रदेश में डिमांड है. बांका जिले के कटोरिया गांव में पीढ़ियों से सिल्क साड़ी बनाने का काम चला आ रहा है.
मुस्लिम बुनकरों का गांव
बांका का यह गांव मुस्लिम समुदाय बाहुल्य है. सिल्क का साड़ी बनाने का इनका पुश्तैनी काम है. यहां आपको शुद्ध रेशम या सिल्क से तैयार की गई साड़ियां सस्ते दाम में उपलब्ध हो जाएंगी. इस गांव में करीबन 1000 से अधिक परिवार रहते हैं और सभी इसी काम पर निर्भर हैं.
ऐसे बनती है एक साड़ी
सिल्क साड़ी निर्माता मोहम्मद हसनैन बताते हैं इस काम में पूरे परिवार का सहयोग होता है. घर की महिलाएं और बेटियां ककून को कुकर में तीन दिन उबालते हैं. उबलने के बाद जांघ पर 14 ककून से एक धागे को तैयार करते हैं. उसके बाद चरखे से धागे को नल्ली या अंटा में पिरोते है. फिर पुरुष बुनकर पिरोए हुए धागे को हैंडलूम पर चढ़ाकर सिल्क की साड़ियां तैयार करते है. हैंडलूम पर चढ़ने के बाद 8 से 10 घंटे का समय लगता है और इस पूरी प्रोसेसिंग में करीबन 12 से 15 दिन का समय लगता है. तब 8 मीटर की एक साड़ी तैयार होती है.
300 ककून से बनती है एक साड़ी
बुनकर ये ककून बांका के कटोरिया और झारखंड से खरीदकर लाते हैं. एक ककून करीब 8 रुपए का होता है. एक सिल्क की साड़ी बनाने में 250 से 300 ककून से तैयार धागे की आवश्यकता होती है. उस धागे से फिर सिल्क की साड़ी तैयार की जाती है. एक साड़ी पूरी तरह तैयार करने में 3000 से 3500 रुपए का खर्च आता है. जिसे ये बुनकर 4000 से 4500 रुपए में बेचते हैं. यही साड़ी बाजार में 7000 से 10000 रुपए में बिकती है. बांका की साड़ियां बिहार ही नहीं बल्कि झारखंड, असम, बंगाल, आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों में बिकने जाती हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 21:23 IST