अभिषेक जायसवाल/वाराणसी: उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में सतुआ संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. यह एक ऐसा लोकपर्व है, जिसमें सतुआ दान करने का जितना महत्व है, उतना ही उसके सेवन करने का भी है. इसके पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनो वजह हैं. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य राशि परिवर्तन कर मीन से मेष राशि में प्रवेश करता, तो उस दिन को सतुआ संक्रांति या बैसाखी के नाम से जाना जाता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन हरिद्वार और काशी मे गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. इसके अलावा कुछ खास चीजों के दान से पापों का नाश होता है. काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि 13 अप्रैल को रात्रि 11 बजकर 17 मिनट पर सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करेंगे. मध्यरात्रि से पहले सूर्य मेष राशि में प्रवेश कर रहे हैं. इसलिए संक्रांति का मान 13 अप्रैल को ही होगा.
जरूर करें इन चीजों का दान
13 अप्रैल को मध्यान काल से सूर्यास्त से पहले तक लोग गंगा स्नान कर सकते हैं. इस दिन काशी और हरिद्वार में गंगा स्नान के बाद सत्तू, पंखा, श्रीफल और जल भरा घड़ा दान करने का विशेष महत्व है और इससे पितर तृप्त होते हैं और पापों का नाश भी होता है.
ये होता है फायदा
पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि इस दिन भरा हुआ घड़ा दान करने से पितर तृप्त होते हैं. वहीं सत्तू के दान से देव प्रसन्न होते हैं और पापों का नाश होता है. इसके अलावा पंखा दान से कुंडली का चंद्रमा मजबूत होता है और शरीर में जलतत्व की कमी दूर होने के साथ ही समस्याएं भी दूर होती है.
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FIRST PUBLISHED : April 10, 2024, 14:49 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.