एयरपोर्ट का छज्जा गिरना किसी साधारण इमारत के गिरने जैसा नहींपहली बारिश क्या सच में इतनी जबरदस्त थी ?
बिहार में पुल गिरने की खबरें इस बार भी मिली. कुछ समय पहले भी राज्य में पुल गिरने की खबरें सुर्खियों में थी. लेकिन इस बार राजधानी दिल्ली में एयरपोर्ट का बाहरी ढांचा गिर गया. टर्निनवल वन का ये ढांचा बहुत ही अच्छी क्वालिटी से स्टेट ऑफ आर्ट का बनाया गया था. बनाने वाली कंपनी की खूब तारीफ हुई थी. दिल्ली एयरपोर्ट बनाने वाली और इसका संचालन करने वाली कंपनी को डायल कहते हैं. इसकी मूल कंपनी जीएमआर है. गांधी मल्लिकार्जुन राव ने इस कंपनी की 1978 में स्थापना की थी. कंपनी बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर ढांचे बनाने के साथ उनकी सुविधा-सुरक्षा का काम भी करती है.
पहली बारिश से अत्याधुनिक ढांचा गिर गया!
फिलहाल ढांचा गिरने की वजह बारिश बताई जा रही है. बारिश में गरीबों के घर तो गिरते सुने गए हैं, लेकिन अगर दिल्ली के प्रवेश द्वार का ढांचा भरभरा जाय तो हैरानी होती है. वैसे बारिश भी ऐसी नहीं हुई है कि बारिश पर दोष दे कर पल्ला झाड़ लिया जाय. दिल्ली सिसमिक जोन 4 में आती है. इसका मतलब ये है कि यहां विनाशकारी भूकंप भी आ सकता है. दुआ है कि ऐसा न हो लेकिन क्या बारिश से भरभरा जाने वाला ढांचा भूकंप के किसी बड़े झटके को झेल सकेगा. यहां तो बनाए जाने वाले ढांचे ऐसे होते हैं जो भूकंप और बारिश जैसे किसी कुदरती स्थिति को झेल सके. यहां ये भी बताना जरूरी है कि जब एयरपोर्ट के नए ढांचे को बनाया गया था तो उसकी कलाकारी और निर्माण शैली ने बहुत को सुखद हैरानी हुई थी. एक नये तरह का निर्माण ढांचा देखने को मिला था.
इतनी बारिश तो नहीं थी! दिल्ली एयरपोर्ट के टर्मिनल वन की छत गिरने की तसवीर बनाने को कहने पर एआई ने ये चित्र बनाया.
बिहार तो कहा सुना ही जाता है
व्यवस्था को लेकर बिहार की हमेशा आलोचना होती रही है. एक आमफहम बात बड़ी आसानी से कह सुना दी जाती है कि बिहार में गड़बड़ियां होगी ही. सुबूत भी मिलते रहे हैं. सूबे के अररिया, सिवान, मोतीहारी और किशनगंज में जिस तरह से पुल गिरे वो व्यवस्था में चल रही गड़बड़ियों के ही एक्जिविट हैं. ऐसा लगता है कि ये पुल जल समाधि लेने के लिए ही बनाए गए थे. ऐसा भी नहीं था कि इन पुलों पर बहुत भार पड़ा हो, ऐसे ही दरक गए. लगा कि भरभरा कर गिरते बता गए हो उनमें सीमेंट की जगह बालू का इस्तेमाल जरुरत से ज्यादा कर दिया गया हो.
ठेकेदारी की कहानी
ठेकेदारी पर काम करने वाला कोई व्यक्ति हो या कोई कंपनी. अपने फायदे के लिए ही काम करता है. वो पहले पैसा लगता है फिर उसे फाइलों की लंबी यात्रा के बाद वापस उसकी लागत मिलती है. ये भी अब कोई ढंकी-छुपी बात नहीं रह गई है कि फाइलों की इस यात्रा में ठेकेदार के मत्थे बहुत सारा खर्च पड़ जाता है. हो सकता है बिहार की उबड़ खाबड़ रास्तों पर फाइलों की यात्रा ज्यादा खर्चीली रही हो, लेकिन ऐन दिल्ली में और वो भी एयरपोर्ट पर हुए इस हादसे ने बहुत सारे सवालात खड़े कर दिए हैं.
‘बड़ा शोर सुनते थे पहलू में…’
एयरपोर्ट का जो हिस्सा गिरा है वो टर्मिनल 1 का डिपार्चर के तौर पर जाना जाता है. 2009 में इसका निर्माण 5 लाख 70 हजार फीट स्क्वायर के एरिया में किया गया था. इसकी लागत के बारे में फिलहाल अलग से जानकारियां नहीं दिख रही है, लेकिन एयरपोर्ट निर्माण के लिए 9 हजार 800 करोड़ की परियोजना बनाई गई थी. एयरपोर्ट का ये ढांचा भी उसी का हिस्सा था. जीएमआर सुमूह ने अंबाला-चंडीगढ़ नेशनल हाइवे, अदलूर-गुंडिया पोचनपल्ली हाइवे , चेन्नई आउटर रिंग रोड, हैदराबाद-विजयवाड़ा जैसी बड़ी परियोजनाओं का निर्माण किया है. देशभर तमाम दूसरी बड़ी इमारतों का निर्माण भी इसी कंपनी ने किया है. ऐसी इमारतों में कमलनागा थर्मल पावर प्लांट, टाटा मिस्ट प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश शामिल है. साथ ही रेलवे की भी तमाम बड़ी परियोजनाएं इस कंपनी के जिम्मे हैं.
Tags: Bridge Construction, Delhi airport
FIRST PUBLISHED : June 28, 2024, 15:41 IST