नागौर. राजस्थान में मारवाड़ के लोग आज भी पीने के पानी के लिए परंपरागत जल स्रोतों पर ही निर्भर हैं. यही वजह है कि वे लोग नाड़ी-तालाब की साफ-सफाई व उसके संरक्षण पर काफी ज्यादा ध्यान देते हैं. नागौर से 8 किलोमीटर दूर है बासनी कस्बा और यहां के लोग आज भी नाड़ी-तालाब का पानी पीते हैं. यह कस्बा मुस्लिम बाहुल्य है. कस्बे की कुल आबादी करीब 50 हजार है. बीते साल सरकार ने इसे नगरपालिका घोषित कर दिया था. यहां नहर का पानी भी सप्लाई होता है लेकिन स्थानीय निवासी इस पानी को नहाने-धोने और जानवरों को पिलाने में ही इसका इस्तेमाल करते हैं.
बासनी कस्बे में दो तालाब हैं. इनकी चारदीवारी की गई है. भीतर प्रवेश के लिए गेट लगाए गए हैं. अनाधिकृत प्रवेश के लिए ताले लगाए गए हैं और तालाबों के बाहर चौकीदार पहरा देते हैं. समाजसेवी मोहम्मद अनवर चौहान ने कहा कि गांव के लोग आज भी बारिश का पानी पीते हैं. ग्रामीण नाड़ी-तालाब को घर का परिंडा मानकर इसकी साफ-सफाई करते हैं. सुरक्षा के लिए चौकीदार तैनात किए हुए हैं. जानवर व कोई भी व्यक्ति तालाबों को गंदा न कर सके, इसके लिए गेट पर ताले लगाए गए हैं.
सामाजिक कार्यों के लिए मिलता है चंदा
बासनी के रहने वाले मोहम्मद सद्दीक ने कहा कि कस्बे में साबरी तालाब और गोरधन सागर तालाब हैं. बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से संचालित ‘नागौरी कौमी फंड बासनी’ इनकी देखरेख करती है. कस्बे के कई लोग महानगरों समेत अन्य शहरों में कारोबार करते हैं और वे लोग यहां सामाजिक कार्यों के लिए डोनेशन देते हैं. इन पैसों से बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा, पानी की व्यवस्था व गांव के पुराने जल स्रोतों की देखरेख करती है.
गोरधन सागर तालाब पर टैंकर की व्यवस्था
उन्होंने बताया कि साबरी नाड़ी से केवल घड़ा भरकर पानी ले जाया जा सकता है, जबकि गांव से दो किलोमीटर दूर गोरधन सागर तालाब पर टैंकर की व्यवस्था है. इसके लिए बासनी चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से कूपन और डायरी में एंट्री की व्यवस्था की गई है. कूपन निशुल्क दिया जाता है. कूपन और डायरी में एंट्री दिखाने के बाद ही पानी लेने दिया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : May 14, 2024, 17:14 IST