हिना आज़मी/ देहरादून: सालभर के इंतजार के बाद मुसलमानों का पवित्र महीना रमजान शुरू हो चुका है. रमजान इबादत का महीना कहा जाता है. बताया जाता है कि 622 ईस्वी में पैगम्बर हजरत मोहम्मद के हिजरत करने यानी मक्का से मदीना जाने के दूसरे साल यानी 624 ईस्वी में इस्लाम में रमजान के महीने में रोजा रखने को फर्ज करार दिया गया था. इससे पहले चांद की कुछ तारीखों में रोजा रखा जाता था.
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी ने Local 18 को जानकारी देते हुए कहा कि रमजान मुबारक का महीना 2 हिजरी (इस्लामिक सन) से शुरू किया गया था. 2 हिजरी में ही रोजे की शुरुआत की गई थी. यह वह वक्त था जब इस्लाम में रोजे फर्ज कर दिए गए थे. पैगम्बर हजरत मोहम्मद को मदीने गए हुए 2 साल हो गए थे. तभी से ही लोगों ने रोजे रखने शुरू किए हैं. यह इस्लाम के पांच फर्जों में से एक है. मुसलमानों के लिए 5 फर्ज बताए गए हैं, जिनमें कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज शामिल है. इस्लाम को मानने वाले हर शख्स के लिए रोजा रखना बेहद जरूरी है. इसे रमजान का चांद दिखने से लेकर ईद का चांद दिखने यानी अगले 29 या 30 दिनों तक रखने का हुक्म कुरान में दिया गया है. रोजा सब्र और परहेजगारी के लिए जरूरी है. ताकि इंसान खुदा की दी हुई चीजों की एहमियत समझ सकें. गरीबों को सदका, फितरा और जकात (दान) करें.
रमजान में नाजिल हुआ था कुरान
शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी ने बताया कि रमजान पाक के महीने में खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब पर क़ुरान नाजिल फरमाया था. उन्होंने बताया कि रमजान के पूरे महीने को तीन हिस्सों में समझा जा सकता है. पहले दस दिन रहमत के, दूसरे 10 दिन मगफिरत के और तीसरे दस 10 जहन्नुम से आजादी के माने जाते हैं. रोजे की बात करें तो सूर्योदय से पहले (सेहरी) से लेकर सूर्यास्त (इफ्तार) तक मुसलमानों को बिना खाए-पिए खुदा की इबादत करनी होती है. रात को तरावीह पढ़नी होती है. वहीं, कुरान की तिलावत भी लोग करते हैं. परिवार में जितने भी लोग हैं, उनके फितरे पैसे के रूप में गरीबों को दिए जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 13, 2024, 13:38 IST