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Gold Rate Today; Sona Chandi Ka Bhav Aaj Ka Latest Opinion | भास्कर ओपिनियन- चढ़ता भाव: सोना 65 हज़ार पार हो या 75 पार, ख़रीदने वाले के लिए भाव- शून्य ही होता है

16 घंटे पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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सोना 65 हज़ार पार। सोना हर वक्त हर तरह से सुहाना ही होता है। चाहे चद्दर ओढ़कर सोना हो, चाहे अच्छा लगने वाला सोणा हो, या आभूषण के रूप में पहनने वाला सोना हो। हमेशा अच्छा ही लगता है।

सोने की एक बड़ी ख़ासियत है। ये हर वक्त महँगा लगता है और हर वक्त उतने ही चाव से ख़रीदा भी जाता है। जब चार हज़ार रुपए तौले था तब भी महँगा लगता था और अब 65 हज़ार रुपए तौला है तब भी। लेकिन ख़रीदी का आकर्षण तब भी उतना ही था, आज भी उतना ही है।

पहले ट्रेंड होता था कि सेंसेक्स चढ़ता था तो सोना घटता था और सोना चढ़ता था तो सेंसेक्स लुढ़कता था। हालांकि, अब अलग ही कहानी चल रही है। सेंसेक्स भी चढ़ रहा है और सोना भी बढ़ रहा है।

केंद्र की मोदी सरकार की तरह या ये कहें कि भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता की तरह। बढ़ती ही जा रही है। चढ़ती ही जा रही है। 370 और चार सौ पार का नारा जबसे भाजपा ने चलाया, जन मानस के मन में तो समझो तभी से आने वाला लोकसभा चुनाव एकतरफ़ा हो गया। वो लोकसभा चुनाव जिसकी तारीख़ें तक अभी घोषित नहीं हुई हैं।

ख़ैर बात सोने की है और अभी शादियों का मौसम गया नहीं है। जी भर के सोना ख़रीदा जाएगा। चाहे भाव 65 हज़ार हो या 75 हज़ार ही क्यों न हो! दरअसल, भाव ख़रीदने का हो तो सोना फिर भाव शून्य हो जाता है।

उसके भाव से किसी को कोई लेना- देना नहीं होता। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना पड़ता है कि तौल में थोड़ा बहुत कम ज़्यादा हो जाता है यानी दस तौले ख़रीदने वाला सात ही ख़रीदता है और पाँच तौला ख़रीदने वाले का मन तीन में ही मान जाता है। लेकिन ख़रीदते सब हैं। क्योंकि परम्पराएँ ही ऐसी हैं जिन्हें हमने अपने सिर पर बुरी तरह लाद लिया है।

गुजरे जमाने में लोगों के पास सोना होता था, पैसा नहीं होता था। सोना तब था भी सस्ता। समझा जाता है कि शादियों में सोना इसलिए दिया जाता था कि जीवन में अगर कभी कोई आफ़त- मुसीबत आएगी तो ये सोना काम आएगा, लेकिन अब वही सोना फ़ैशन बन गया है।

भारी मात्रा में सोना चढ़ाने की जिसमें हिम्मत नहीं है, उसे भी मजबूरी में, यहाँ तक कि क़र्ज़ लेकर भी सोना देना पड़ता है। इस तरह की खर्चीली परम्पराओं पर विराम लगना चाहिए। समाज में ऐसे चलन को रोकना ही चाहिए। बड़े लोग लॉकर में रखने के लिए सोना ख़रीदते हैं और छोटे लोग उसी सोने के बोझ तले जीवनभर दबे रहते हैं।

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