children are taking suicidal steps, change has to be brought in the society – News18 हिंदी

अनूप पासवान/कोरबाः- देश के अलग-अलग राज्यों में हुए बोर्ड परीक्षाओं का रिजल्ट आना शुरू हो गया है. रिजल्ट खराब आने के कारण कई जगह से बच्चों के सुसाइड करने की खबरें सामने आ रही हैं. माता-पिता को भी बच्चों पर ज्यादा दबाव डालने से मना किया जाता है. बावजूद इसके एग्जाम और रिजल्ट का स्ट्रेस बच्चों की जान ले रहा है. सिर्फ एक खराब रिजल्ट से बच्चे अपनी जिंदगी को खराब समझने लगते हैं. इसके पीछे दोषी कोई और नहीं, बल्कि समाज में फैली यह मानसिकता है कि फेल हो जाऊंगा, तो लोग क्या कहेंगे? लगातार बच्चों में बढ़ रहे सुसाइड के मामले को लेकर हमने साइकेट्रिस्ट से बातचीत की.

बच्चे हो जाते हैं डिप्रेस्ड
कोरबा मेडिकल कॉलेज की साइकेट्रिस्ट डॉ. छाया ने बताया कि परीक्षा का समय और उसके बाद रिजल्ट, इन दोनों समय मानसिक रूप से बीमार बच्चे ज्यादा देखने को मिलते हैं. परीक्षा का प्रेशर हो या फिर रिजल्ट का डर, दोनों समय बच्चे डिप्रेस्ड हो जाते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं. अगर आप समय रहते बच्चों में हो रहे बदलाव को समझने लगेंगे, तो उन्हें आत्मघाती कदम उठाने से रोका जा सकता है.

समाज में बदलाव जरूरी
डॉ.छाया ने बताया कि वर्तमान में बच्चों के सुसाइड करने के मामले ज्यादा सुनने को मिल रहे हैं. बच्चों को आत्मघाती कदम उठाने से रोकने के लिए समाज में बदलाव लाना बेहद जरूरी है. बच्चों को परीक्षा में ज्यादा नंबर लाने की बजाय बेहतर समझने और सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए. आज के परिवेश को देखते हुए बच्चों को समझना बेहद जरूरी है. साथ ही साथ उनको यह समझाना भी जरूरी है कि एक परीक्षा सिर्फ उनका भविष्य तय नहीं कर सकता है. बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए. लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए नहीं, बच्चे भी आपको अपना दोस्त मानें, ये बेहद जरूरी है. तभी वो आपको अपने विचार खुलकर बता पाएंगे. परीक्षा परिणाम चाहे जैसा भी हो, बच्चों से बात करनी चाहिए और उन्हें यह समझना चाहिए कि सिर्फ एक रिजल्ट आप की सफलता तय नहीं करता. आगे और भी बेहतर करने के मौके मिलते रहते है.

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लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी
साइकेट्रिस्ट छाया ने बताया कि पेरेंट्स को बच्चों के प्रति हमेशा गंभीर नहीं होना चाहिए. बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें और उनके मन की बात जानें. बच्चे जब डिप्रेशन में होते हैं और गलत कदम उठाने की सोचते हैं, तब उनके अंदर बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं. जब कभी बच्चा अचानक से बाहर खेलने जाना बंद कर दे, बातें करना कम कर दे, बच्चों में चिड़चिड़ापन नजर आए, अकेला रहने लगे, भूख ना लगे, देर रात तक नींद ना आए, तो एक बार साइकेट्रिस्ट से जरूर बात करवाएं.

Tags: Chhattisgarh news, Korba news, Local18, Mental Health Awareness

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