अनूप पासवान/कोरबाः- स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां हो चुकी हैं. ऐसे में बच्चों का अधिक से अधिक समय मोबाइल और टीवी के सामने बीत रहा है, जो खतरनाक है. बोरियत दूर करने के लिए घंटो मोबाइल व टीवी स्क्रीन के सामने रहना बच्चों के लिए घातक है. इसे लेकर मनोवैज्ञानिक भी सलाह दे रहे हैं कि बच्चों को अधिक से अधिक फिजिकल एक्टिविटी कराएं.
कोविड 19 महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षण में बदलाव का उद्देश्य शुरू में यह सुनिश्चित करना था कि बच्चों की शिक्षा में रुकावट न आए. हालांकि एक बार जब उनकी पढ़ाई पूरी हो गई, तो बच्चे बोरियत दूर करने के लिए गेम खेलने और टीवी देखने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग करने लगे. जिसके कारण अब अत्यधिक गेमिंग की यह आदत एक तरह का विकार बन गई है. ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां बच्चों ने गेमिंग की लत के कारण खतरनाक कदम उठाए हैं. अभी सभी कक्षाओं की परीक्षाएं समाप्त हो चुकी हैं और गर्मी की छुट्टी शुरू हो गई हैं. इस दौरान माता-पिता अपने बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखें. उनके मानसिक और शारीरिक विकास वाले खेल-कूद गतिविधियों के प्रति प्रोत्साहित करें.
मानसिक रोग का हो रहें शिकार
इस विषय को लेकर कोरबा मेडिकल कॉलेज की मनोरोग विशेषज्ञ एमडी साइकैटरिस्ट डॉ. नीलिमा महापात्रा ने लोकल18 से बात करते हुए बताया कि इन दिनों मोबाइल गेमिंग के कारण बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं. वहीं शारीरिक गतिविधियों वाले खेलकूद नहीं करने के शरीर का विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है. किसी भी गेम को इस तरह से तैयार किया जाता है कि बच्चा उसके प्रति आकर्षित हो. बच्चे आकर्षित होकर गेम खेलना शुरू करते हैं और धीरे-धीरे उन्हें इसकी आदत लग जाती है.
इसी लत को मेडिकल भाषा में गेमिंग डिसऑर्डर बताया गया है. अभी गर्मी की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं. ऐसे में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए उन्हें समर कैंप में ले जाए. धूप में बाहर निकालने के बजाय घर पर ही बच्चों के साथ समय बिताएं और चेस, कैरम बोर्ड सहित अन्य खेलो को साथ मे खेलें. छुट्टियों में शाम के वक्त बच्चों को बाहर दूसरे बच्चों के साथ क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन या अन्य गतिविधियों वाले खेल-कूद करवाएं.
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बच्चों की गतिविधियों पर दें ध्यान
उन्होंने कहा कि माता-पिता को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि कहीं उनका बच्चा इस मानसिक बीमारी से ग्रसित तो नहीं है. इसके लिए उन्हें बच्चों के भीतर होने वाले बदलाव को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए. बच्चे पहले गेम्स से आकर्षित होते हैं और बाद में वे कब इसके एडिक्ट हो जाते हैं, उन्हें पता नहीं चलता है. इसलिए बच्चों में अगर आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, गुस्सा करना, पागलों जैसी हरकत करना आदि समस्या नजर आए, तो एक बार साइकैटरिस्ट से जरूर दिखाएं.
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FIRST PUBLISHED : April 28, 2024, 14:30 IST