Border Villages Of Pathankot Do Not Have Direct Contact With Country – Amar Ujala Hindi News Live

border villages of Pathankot do not have direct contact with country

मकोड़ा-मराड़ा पत्तन का अस्थायी पुल
– फोटो : संवाद

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पठानकोट में भारत-पाक सीमा पर बसे रावी दरिया के गांव के लोगों का आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश के साथ सीधा संपर्क नहीं है। दरिया पार बसे गांव के लोगों को एकमात्र किश्ती का सहारा है। 

दशकों से रावी दरिया पर गुरदासपुर का मकौड़ा-मराड़ा पत्तन व पठानकोट के कीड़ी पत्तन पर स्थायी पुल की मांग करते आ रहे लोगों को चुनाव के समय राजनीतिक लोग किश्ती के जरिये दरिया पार कर उनके पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करने जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतने बाद 5 साल तक लोगों की सुध नहीं लेते। 

दो बार फंड हो चुका लैप्स

भाजपा नेता अनिल वासुदेवा, प्रवक्ता योगेश ठाकुर और बीजेपी नेता पंकज ने बताया कि सांसद सनी देयोल ने साल 2022 में पीडब्ल्यूडी के पास पर्याप्त फंड न होने के कारण इन पुलों के निर्माण को सेंट्रल रोड ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के अधीन लाकर कुल 190 करोड़ रुपये का फंड केंद्र सरकार से जारी करवाया था, जिसमें मकौड़ा पत्तन के लिए 100 करोड़ और कीड़ी पत्तन के लिए 90 करोड़ रुपये का बजट रखवाया गया। राज्य सरकार की तरफ से ध्यान न देने पर दो बार फंड वापस चला गया। तीसरी बार एमपी ने नेता गडकरी से मिलकर फंड रिलीज करवाया, लेकिन अब देखना यह है कि राज्य सरकार इन पुल का काम कितनी देर में शुरू करवाएगी। सत्ता में आते बॉर्डर एरिया में लोगों को आने वाली समस्या का पहल के आधार पर समाधान होगा।

सेहत सुविधाओं का टोटा, आठवीं से ऊपर स्कूल नहीं

रावी दरिया के पार बसे गांवों में न तो पर्याप्त सेहत सुविधाएं हैं और न ही आठवीं से ज्यादा कोई स्कूल है। ऐसे में अधिकांश लोग तो अपने बच्चों को आगे की पढ़ाई ही नहीं करवाते। कारण यह है कि बच्चों को आगे पढ़ना है तो किश्ती से दरिया पार कर जाना पड़ेगा। वहीं अगर किसी को गंभीर बीमारी है या इमरजेंसी सेहत सुविधा चाहिए तो ऐसी हालत में भी दरिया पार कर बहरामपुर या दीनानगर व गुरदासपुर आना पड़ता है। गांवों के लोग पक्के पुल की मांग दशकों से कर रहे हैं। किसी भी सरकार के पुल नहीं बनाकर देने के चलते उन्होंने चुनावों का बायकॉट कर रखा है।

क्रशरों की वजह से उपजाऊ जमीन खतरे में

गांव अखवाड़ा के किसान गुरमुख सिंह ने कहते हैं कि उनका गांव बाॅर्डर से मात्र दो तीन किलोमीटर की दूरी पर है और ऐसे में जिन रसूखदारों ने उपजाऊ जमीनें खरीदी हुई है। वहां पर 6-7 क्रशर लगवा दिए गए हैं। क्रशर संचालकों की तरफ से उपजाऊ जमीनों को भी चोरी छिपे खोदा जा रहा है, जिससे साथ लगती किसानों की जमीनों को बंजर होने का डर सताने लगा है। एक तो बिना परमिशन के क्रशर चल रहे हैं और दूसरा खुदाई करने वालों के पास कोई निर्धारित खड्ड भी नहीं है। क्षेत्र के माइनिंग विभाग को भी कई बार सूचित किया जा चुका है, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।

वाटर लेवल 100 फीट से ज्यादा नीचे होगा, तो पड़ सकता सूखा

किसान सतविंदर सिंह ने कहा कि जहां से क्रशर संचालक खुदाई कर रहे हैं, वहां पानी का लेवल नीचे हो जाएगा, क्योंकि पहले ही गांव में वाटर लेवल 25 फीट के करीब है। ऐसे में अगर क्रशर संचालक खुदाई करते रहे तो भविष्य में पानी का लेवल 100 फीट से पार जा सकता है। इससे किसानों की जमीनों में सूखा पड़ सकता है। क्रशर प्रशासन और सरकार की मिलीभगत से चल रहे हैं, जिससे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पढ़ रहा है। दूसरी तरफ क्षेत्र के माइनिंग विभाग के जेई सुनील के साथ बातचीत की गई तो उनका कहना था कि उक्त क्रशरों में सिर्फ एक दो को ही क्रशर लगाने की परमिशन मिली हुई है और बाकी अन्य क्रशरों का मामला ध्यान में है। जब उनसे पूछा गया कि परमिशन किस की तरफ से दी गई है तो वे कभी फॉरेस्ट विभाग या फिर पॉल्यूशन बोर्ड का नाम बताने लगे। उसके बाद जेई ने कहा कि इसके बारे में माइनिंग विभाग के एसडीओ ही गंभीरता से बता सकते हैं। जेई ने यह भी कहा कि क्रशर संचालक जमीन में खोदाई नहीं कर रहे।

क्रशरों की रिपोर्ट बनाकर पॉल्यूशन विभाग को भेजी: डीएफओ

वन्य जीव विभाग के डीएफओ परमजीत सिंह ने कहा कि वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी के करीब 1 किलोमीटर दूरी तक कोई क्रशर नहीं लगा सकता। अब जो अखवाड़ा क्षेत्र में क्रशर लगे हैं, उनकी रिपोर्ट बनाकर पॉल्यूशन विभाग को जांच के लिए भेज दी गई है।

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