अंबाला. रुझानों में भाजपा की बंतो कटारिया कांग्रेस के वरुण चौधरी से पिछड़ रही थीं और अंत में हार भी गईं. बता दें कि अंबाला हरियाणा की इकलौती ऐसी सीट है, जो हमेशा अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित रही है. अहम यह है भी है कि यह सीट प्रदेश की सबसे पुरानी लोकसभा सीट में शुमार है. यहां पहला चुनाव 1952 में हुआ. तब से यहां भाजपा (पूर्व में जनसंघ) और कांग्रेस में कांटे की टक्कर होती रही है.
जानकारी के अनुसार, इस लोकसभा सीट की सीमाएं पंजाब, हिमाचल और उत्तर प्रदेश से सटी हुई है. कभी इसका दायरा पंजाब-हिमाचल प्रदेश तक फैला था और तब इसे अंबाला-शिमला लोकसभा सीट कहा जाता था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 सीट पर जीत हासिल की थी.
बाद में सांसद रतन लाल कटारिया के निधन हो गया था और फिर तब से अंबाला सीट खाली थी. अंबाला लोकसभा में अंबाला, पंचकूला और यमुनानगर जिले शामिल हैं. इन जिलों में कालका, पंचकूला, अंबाला शहर, अंबाला कैंट, नारायणगढ़, मुलाना, साढौरा, जगादरी और यमुनानगर विधानसभा सीटें हैं. अंबाला लोकसभा में कुल मतदाता करीब 17 लाख हैं.
वैज्ञानिक उपकरणों और कपड़ा मार्केट के लिए प्रसिद्ध
भारत के सबसे सुंदर शहरों में शामिल चंडीगढ़ से अंबाला की दूरी पचास किलोमीटर है. अंबाला वैज्ञानिक उपकरणों और कपड़ा मार्केट के लिए प्रसिद्ध है. इसके अलावा, अंबाला रेलवे स्टेशन और सेना की छावनी भी यहां हैं. साथ ही अंबाला में एयरफोर्स का एयरबेस भी है.
अंबाला लोकसभा से भाजपा ने सांसद रहे रतनलाल कटारिया की धर्मपत्नी बंतो कटारिया को मैदान में उतारा. वहीं, कांग्रेस ने मुलाना से विधायक वरुण चौधरी पर अपना विश्वास जताया. बंतो कटारिया को जहां रतनलाल कटारिया के स्वर्गवासी होने के बाद यह टिकट मिला तो उन्हें भावनात्मक लहर से जीतने की उम्मीद थी और नरेंद्र मोदी का नाम का सहारा था. उधर वरुण युवा चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं और विधानसभा में बेस्ट विधायक का खिताब जीत चुके हैं. वरुण मुलाना के पिता फूलचंद मुलाना कांग्रेस के बड़े नेता रहे और प्रदेश कांग्रेस के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 4, 2024, 05:35 IST