झांसी. डॉक्टर बनने की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने के बाद भी लोगों को कई साल संघर्ष करना पड़ता है. इसके बाद ही उन्हें एक अच्छी पहचान मिल पाती है. ऐसा माना जाता है कि उम्र के एक पड़ाव के बाद ही कोई डॉक्टर अपने विषय का एक्सपर्ट बन पाता है. लेकिन, झांसी के एक डॉक्टर ने इस बात को गलत साबित कर दिखाया है.
झांसी के पैरामेडिकल कॉलेज के निदेशक डॉ. अंशुल जैन मात्र 42 साल की उम्र में कई कीर्तिमान अपने नाम कर चुके हैं. इस उम्र में ही वह मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर के पद तक पहुंच चुके हैं. इससे पहले वह मेडिकल कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल भी रह चुके हैं. वर्तमान में वह मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष हैं.
पिता से मिली प्रेरणा
डॉ. अंशुल जैन ने बताया कि वह अपने पिता से प्रेरणा लेकर मेडिकल फील्ड में आए थे. पोस्ट ग्रेजुएशन करने के समय जब सब्जेट चुनने की बारी आई तो उन्होंने एनेस्थीसिया को चुना. उन्होंने कहा कि यह एक पॉपुलर फील्ड था. हर तरह की सर्जरी में सब से पहले एनेस्थीसिया के डॉक्टर ही जरुरत पड़ती है. इसकी मदद से उन्होंने हर फील्ड के डॉक्टर के साथ काम करने के अनुभव मिला.
ऑक्सीजन मास्क को मिला भारत सरकार से पेटेंट
डॉ. अंशुल जैन को कोरोना काल में झांसी मेडिकल कॉलेज का नोडल अधिकारी बनाया गया था. इस दौरान उन्होंने मरीजों की सेवा करने के साथ ही कई प्रकार के रिसर्च भी किए. हाल ही में उन्होंने एक नया ऑक्सीजन मास्क भी डिजाइन किया है. यह मास्क ऑक्सीजन की बर्बादी को रोकता है. इस मास्क को भारत सरकार से पेटेंट भी मिल चुका है. इसके साथ उन्होंने कई अन्य प्रकार के रिसर्च करके मेडिकल क्षेत्र में काम आने वाले कई उपकरण बनाए हैं. इसके साथ ही उन्होंने मेडिकल फील्ड से जुड़ी कई किताब भी लिखी हैं.
कुछ बड़ा करने का था जज्बा
डॉ. अंशुल जैन ने बताया कि उनकी उम्र जरुर छोटी थी. लेकिन, जज्बा हमेशा से कुछ बड़ा करने का था. इस यात्रा में उनके सीनियर्स ने भी उनको बहुत प्रोत्साहन दिया. उन्हें सबसे अधिक खुशी तब मिलती है जब कोई मरीज ऑपरेशन टेबल से ठीक होकर उठता है. कई मरीजों को कार्डियक अरेस्ट से बचाने से लेकर उन्हे नया जीवन देने तक में अहम भूमिका निभाई है. पैरामेडिकल फील्ड के लिए भी वह महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 19, 2024, 21:13 IST