एक ही जगह पर होगा डबल मुनाफा…मछली के साथ करें मोती पालन भी, विशेषज्ञ दे रहे यह सलाह

समस्तीपुर : मछली पालन के क्षेत्र में रुचि रखने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है. वे मछली पालन के साथ-साथ तालाब में मोती पालन भी कर सकते हैं. इसके जरिए अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. पूसा एग्रीकल्चर विवि की विशेषज्ञअभिलिप्सा बिसवाल ने बताया कि मोतीसीप से पैदा होने वाला एक प्राकृतिक रत्न है. भारत सहित दुनिया भर में इसकी मांग है.

अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत वैश्विक बाजार से हर साल बड़ी मात्रा में मोती आयात करता है. अगर आप पूर्व से ही मछली पालन का व्यवसाय कर रहे हैं, तो आप नदी, तालाब या धान की खेत से मोती उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

जानिए क्या है उत्‍पादन का सही तरीका
इस प्रक्रिया में छह मुख्य चरण शामिल है.सीपों को इकट्ठा करना, उन्हें उपयोग के लिए कंडीशनिंग करना, सर्जरी करना, देखभाल प्रदान करना, तालाब की खेती करना और मोतीका उत्पादन करना.सीपको नदी, तालाब या धान के खेतसे भी एकत्रित किया जा सकता है. फिर पानी के बर्तन, तालाब या बाल्टियों में इक्ट्ठा किया जाता है. सीपके लिए आदर्श आकार 8 सेंटीमीटर से अधिक है.उपयोग करने से पहले, मांसपेशियों को दो से तीन दिनों तक पानी में रख दें, ताकि यह ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो.

स्थान के आधार पर सर्जरी तीन प्रकार की होती है
विशेषज्ञ अभिलिप्सा बिसवाल ने बताया कि स्थान के आधार पर सीप की सर्जरी तीन प्रकार से होती है.सतह केंद्र, सतह कोशिका और प्रजनन अंग सर्जरी. इन सर्जरी में उपयोग किए जाने वाले प्राथमिक घटक मोती या नाभिक होते हैं, जो आम तौर पर सीप के गोले या अन्य कैल्शियम युक्त सामग्री से प्राप्त होते हैं. सीपों को एंटीबायोटिक और प्राकृतिक भोजन के साथ नायलॉन बैग में 10-12 दिनों के लिए संग्रहित किया जाता है. उनकी प्रतिदिन जांच की जाती है और किसी भी मृत सीप या जिनके नाभिक निकल गए हों उन्हें बाहर निकाला जाता है.

जानिए क्या है विशेषज्ञ की सलाह
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में मोती पालन एवं मछली पालन एक साथ करने जैसी विषय पर जानकारी देते हुए विशेषज्ञ अभिलिप्सा बिसवाल ने कहा किभारत के अंदर 52 प्रजाति का मोती सीप पाई जाती है.जिसमें से अति उत्तम तीन प्रजाती है. जैसे की लैमेलिडेंस मार्जिनलिस, एल. कोरियानस और पेरेसिया कोरुगेटेडा. जो उच्च गुणवत्ता वाले मोती पैदा कर सकती हैं. ऐसे बिहार में लैमेलिडेंस मार्जिनलिस वैरायटी का नस्ल बहुत ज्यादा पाया जाता है.

वर्तमान में मैं फार्मर फ्रेंडली मेथड से न्यूक्लियस डालकर मोती तैयार की हू.चाहे तो लोग इसके लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के बिरौली से प्रशिक्षण प्राप्त कर मछली पालन के साथ मोती का उत्पादन कर सकते हैं. सीप में पट खुलने पर कोई बाहरी कठोर पदार्थ का कण, न्यूक्लियस चला जाता है. नाजुक सीप को इससे परेशानी होती है. वो अपने शरीर से कैल्शियम कार्बोनेट की परत बनाने लगतीहै और धीरे-धीरे ये मोती की शक्ल में आ जाता है.

Tags: Bihar News, Local18, Samastipur news

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