अमेरिकी उपन्यासकार, पटकथा लेखक और टीवी प्रोग्राम निर्मात जॉर्ज रेमंड रिचर्ड मार्टिन ने अपने एक किरदार व्हाइट वॉकर्स को मारने के लिए खास हथियार का इस्तेमाल किया. ये हथियार ऑब्सीडियन नाम के खास पत्थर से बना था. दरअसल, ये धरती पर पाया जाने वाला सबसे शानदार पत्थर माना जाता है. इससे दुनिया के सबसे तेज धार वाले ब्लेड बनाए जा सकते हैं. इसके अलावा ज्वालामुखी के लावा के साथ निकलने वाला काला कांच भी सबसे खतरनाक हथियार बनाने के लिए अच्छा माना जाता है. अब तक सोचा जाता था कि पाषाण युग के आखिरी समय तक इंसान इन दोनों चीजों से हथियार बनाना नहीं जानते थे. अब नए शोध ने इस सोच को बदलकर रख दिया है.
पुरातत्व विशेषज्ञों को 12 लाख साल पुरानी एक फैक्टरी मिल गई है. इसमें ऑब्सीडियन पत्थर से कुल्हाड़ी बनाने का काम किया जाता था. शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें इथोपिया की मेल्का कंटूर आर्कियोलॉजिकल साइट पर कुल्हाड़ी बनाने की एक वर्कशॉप मिली है. उन्होंने ये दावा साइट की 12 लाख साल पुरानी तलछट की परत में मिले पुरातत्व अवशेषों के आधार पर किया है. उनके मुताबिक, मानव विकास के क्रम में इतने पहले ऑब्सीडियन पत्थर को आकार देकर घातक हथियार बनाने के ये साक्ष्य चौंकाने वाले हैं. अब से पहले तक इसकी कल्पना भी नहीं की गई थी.
कब से ज्यादा हुआ ऑब्सीडियन का इस्तेमाल?
शोध के मुताबिक, पाषाण युग की शुरुआत में ऐसी कुल्हाड़ी बनाने की फैक्टरी मिलने का ये पहला मामला है. ये जानकारी चौंकाती है कि हमारे पूर्वज इतनी जल्दी ऑब्सीडियन को आकार देना सीख गए थे. इसके पहले तक फ्रांस और ब्रिटेन में पाई गईं पाषाण युग के मध्यकाल की कुल्हाड़ी बनाने की कार्यशालाओं में चकमक पत्थर से ब्लेड बनाने के सबूत मिले थे. शोध के लेखकों के मुताबिक, आमतौर पर यही कहा जाता था कि मिडिल स्टोन एज के बाद बॉब्सीडियन पत्थर के जबरदस्त इस्तेमाल के साक्ष्य मिलते हैं. हालांकि, इस पुरातत्व स्थल की खुदाई के दौरान टीम को तलछट की परत हटाने पर 578 स्टोन टूल्स के सबूत मिले.
पुरातत्व विशेषज्ञों को 12 लाख साल पुरानी एक फैक्टरी मिल गई है. इसमें ऑब्सीडियन पत्थर से कुल्हाड़ी बनाने का काम किया जाता था.
ये भी पढ़ें – गर्दन चटकाने पर क्यों मिलता है आराम, क्या ये सही है, किसी बीमारी का संकेत तो नहीं
स्टोन टूल्स में ऑब्सीडियन के तीन उपकरण मिले
शोधकर्ताओं को खुदाई में मिले 578 स्टोन टूल्स में ऑब्सीडियन पत्थर से बने तीन उपकरण मिले. शोधकर्ताओं के मुताबिक, हमें साख्यिकीय विश्लेषण से पता चला कि ये एक पत्थर के औजार बनाने की कार्यशाला थी. नेचुरल इकोलॉजी एंड इवॉल्यूशन जर्नल में छपी शोध रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं का कहना है कि यहां बहुत ही बेहतरीन तरीके से कुल्हाड़ी का निर्माण किया गया. शोधकर्ता यहां मिली कुल्हाड़ी का जिक्र करते हुए बार-बार आश्चर्य जताते हैं. वह कहते हैं कि ये शानदार औजार है. हालांकि, शोध में ये पता नहीं चल पाया है कि ये ऑब्सीडियन कुल्हाड़ी मानव की किस प्रजाति ने बनाई थी. फिर भी जिसने इन उपकरणों को बनाया है, उन्हें इस कला में आला दर्जे की महारत हासिल थी.
ये भी पढ़ें – विमान फैलाते हैं बहुत प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैसों का करते हैं उत्सर्जन, कैसे रोका जाए
सावधानी से गढ़ने पड़ते हैं ऑब्सीडियन से हथियार
लेखकों के मुताबिक, यहां पाए गए उपकरणों की बनावट शानदार है. इन्हें बनाने के लिए बेहद कुशलता की दरकार होती है. दरअसल, ऑब्सीडियन बेहद नाजुक पत्थर होता है. चकमक या बेसाल्ट पत्थर के मुकबाले ऑब्सीडियन पत्थर से औजार बनाने के लिए हाथ काफी सधा हुआ होना चाहिए. उन्हें इन उपकरणों को बनाने के दौरान बेहद सावधानी बरतनी पड़ी होगी ताकि पत्थर टूटकर बिखर ना जाए. उन्हें पता था कि किस जगह पर कब और कितनी चोट करनी है, जिससे पत्थर टूटने के बजाय खतरनाक आकार ले ले. आज भी ऑब्सीडियन पत्थर को तराशने वाले लोगों को हाथों में दस्ताने पहनने पड़ते हैं ताकि उनके हाथ इसकी धार से घायल ना हो जाएं.
.
Tags: History, New Study, Research
FIRST PUBLISHED : April 21, 2024, 19:03 IST