अनूप पासवान/कोरबा. पैसे पेड़ पर नहीं लगते…घर के बड़े-बुजुर्गों के मुंह से यह मुहावरा आपने खूब सुना होगा. शाहखर्ची की आदतों पर अक्सर इसी मुहावरे को लेकर तंज कसे जाते हैं. लेकिन देश के आदिवासी बहुल राज्यों में कुछ पेड़ ऐसे भी हैं, जो हकीकत में पैसे देते हैं. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड समेत तमाम राज्यों में दिखने वाला महुआ का पेड़, ऐसा ही एक पेड़ जो ग्रामीण और आदिवासी समुदाय के लिए आमदनी का बड़ा जरिया है. गर्मी का मौसम आते ही आदिवासी सक्रिय हो जाते हैं. इस मौसम के दो-तीन महीने आदिवासियों के लिए सालभर की कमाई का आधार होता है, क्योंकि इन्हीं महीनों के दौरान महुआ के फूल झड़ते हैं, जिसे बेचकर लाखों की कमाई होती है.
छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला आदिवासी बहुल जिला है. यहां आपको बहुतायत में महुआ के पेड़ दिख जाएंगे. महुआ के फूल ग्रामीण आदिवासियों के लिए बहुमूल्य होते हैं. इसे संभालकर रखने के लिए लोग दिन-रात पेड़ की रखवाली करते हैं. अप्रैल का महीना शुरू होते ही महुआ के फूल गिरने शुरू हो जाते हैं. आदिवासी समुदाय टोकरियां लेकर खेतों और जंगलों की ओर महुआ के फूलों को इकट्ठा करने के लिए निकल पड़ता है. कोरबा जिले में महुआ की सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी के फूल मिलते हैं. वहीं फूड ग्रेड महुआ भी मिलता है, जिसकी डिमांड विदेशों तक है. इस साल कटघोरा वन मंडल के 6 और कोरबा की एक समिति में फूड ग्रेड महुआ का संग्रहण किया जा रहा है. इस बार 500 क्विंटल महुआ संग्रहण का लक्ष्य तय किया गया है.
महुआ आया, लाया बहार
महुआ का पेड़ कोरबा जिले के ग्रामीणों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. चिलचिलाती धूप में आदिवासी समाज के लोग कड़ी मेहनत करके महुआ के फूल को सहेजने का काम करते है. हालांकि इस साल महुआ सीजन शुरू होते ही तेज आंधी के साथ ही बारिश हुई है. इसके कारण महुआ के फूल झड़ गए हैं. इस लिए संग्रहण का लक्ष्य 2000 क्विंटल से घटकर 500 क्विंटल कर दिया गया है. महुआ से लड्डू बनाने का काम पहले से ही हो रहा है. इसके अलावा जूस, कुकीज, चॉकलेट, अचार जैम भी बनाए जाते हैं. इसी वजह से महुआ की मांग विदेशों तक है. कोरबा का महुआ लड्डू रायपुर, बेंगलुरु, दिल्ली तक मंगाया जाता है. फूड ग्रेड महुआ को सुखाने के बाद कोल्ड स्टोरेज भेज में दिया जाता है.
सामान्य महुआ का रेट 30 रुपए
वन विभाग सामान्य महुआ 30 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदी करता है. फूड ग्रेड महुआ का रेट 50 रुपए किलो तक है. हालांकि कोरबा जिले के ग्रामीण बताते हैं कि विभाग कच्चा महुआ की ही खरीदी करता है. 5 किलो कच्चा महुआ सूखने के बाद 1 किलो हो जाता है. इस वजह से 20 रुपए तक फायदा होता है.
बिना लागत के बंपर कमाई
ग्रामीणों का कहना है कि महुआ ऐसा पेड़ है जो एक बार तैयार हो जाए तो बंपर कमाई का साधन बन जाता है. हालांकि इसे तैयार होने में कई साल लग जाते हैं. महुआ के पेड़ से मिलने वाली सभी चीजें काम की होती हैं. पत्ते, छाल और फूल से कई तरह की आयुर्वेदिक दवाइयां बनती हैं. पत्तों से दोना पत्तल बनाया जाता है, जो शादी-ब्याह में काम आता है. फल जिसे स्थानीय भाषा में डोरी कहा जाता है, से तेल निकाला जाता है, वह भी काफी काम का होता है. महुआ के फूल और फल की इतनी ज्यादा डिमांड है कि यह काफी महंगा बिकता है.
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FIRST PUBLISHED : April 9, 2024, 18:42 IST
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