हिना आज़मी/ देहरादून: हम जब शहर में निकलते हैं, तो हमें कई लोग भीख मांगते हुए नजर आते हैं. जबकि वह कोई मेहनत का काम भी कर सकते हैं. क़ई लोग अपनी किस्मत का रोना रोते हुए आसपास दिख जाते हैं. लेकिन, क़ई लोग कुछ ऐसा कर दिखाते हैं जो समाज के लिए उदाहरण बन जाते हैं. इनमें से एक हैं अमित कुमार, जो संघर्षों से लड़कर अपने परिवार की परवरिश कर रहें हैं.
अमित कुमार ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए कहा कि उनकी आंखों में 80% दृष्टिहीनता के चलते बचपन से ही उन्हें कम दिखता है. उनके पिता भी 75 % दृष्टिहीनता के चलते कम ही देख पाते थे. लेकिन, फिर भी उन्होंने किसानी का काम किया. पिता के संघर्ष से उन्होंने बहुत कुछ सीखा और हरिद्वार से देहरादून चले आए. जहां एनआइवीएच के ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस में ट्रेनिंग लेकर बाइंडिंग का काम करने लगे. इतना ही नहीं, वह नौकरी के बाद शाम को मैगी और चाय का वेंडर चलाते हैं. उनकी पत्नी भी एक हाथ से विकलांग हैं, जो शादी के दौरान सिर्फ 12वीं तक पढ़ी हैं. अमित ने शादी के बाद उन्हें बीए तक की पढ़ाई कराई. परिवार के लिए मेहनत करने वाले अमित दूसरों के लिए प्रेरणा बन रहे हैं.
पिता से अमित को मिली है प्रेरणा
अमित बताते हैं कि उनके पिता भी 75% दृष्टिहीनता के चलते कम ही देख पाते थे. फिर भी उन्होंने बहुत मेहनत की. अपने चार बच्चों की परवरिश के लिए वह हरिद्वार लक्सर में रहकर ही खेती-किसानी करते थे. उनके लिए काम बहुत मुश्किल था. फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्हें देखकर ही उन्हें संघर्ष करने की प्रेरणा मिली. जब अमित को अहसास हुआ कि वह इस समाज में ऐसे कोई नौकरी नहीं कर पाएंगे, तो वह देहरादून चले गए. जहां उन्होंने एनआईवीएच में ट्रेनिंग के बाद काम करना शुरू किया. उन्होंने बताया कि वह पहले बहुत हताश रहते थे. लेकिन, जब उन्होंने देखा कि वह फिर भी 20% देख पाते हैं. अमित सुबह 5:30 से 8:30 बजे अपनी स्टॉल लगाते हैं. फिर अपनी नौकरी करते हैं. जॉब के बाद शाम को भी वह 5:30 से रात 9 बजे तक काम करते हैं. इस तरह वह अपने तीन बच्चों और अपनी पत्नी का पेट भर रहे हैं.
FIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 16:04 IST