रूपांशु चौधरी/हजारीबाग. सदियों पहले गुफाओं से शुरू हुई सोहराई पेंटिंग की मुरीद अब पूरी दुनिया है. भारत के आलावा कनाडा, अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में भी ये कला अपनी छाप छोड़ चुकी है. झारखंड की सोहराई कला अब दीवारों के अलावा लकड़ी, कागज, प्लाईवुड, फैब्रिक पर भी दिख रही है. हजारीबाग के दिपुगढ़ा स्थित संस्कृति आर्ट एंड कल्चर म्यूजियम में इसी सोहराई पेंटिंग को साड़ियों पर उकेरा जा रहा है.
संस्कृति आर्ट एंड कल्चर म्यूजियम की अलका इमाम ने Local 18 को बताया कि सोहराई झारखंड की कला है. इस कला के प्रचार-प्रसार के लिए यहां पर काम किया जाता है. कोरोना के दौरान जब सोहराई कलाकारों के पास आउटडोर के काम नहीं बचे थे, तब यहां पर साड़ियों के ऊपर सोहराई प्रिंट करने की शुरुआत की गई थी. यहां पर सभी प्रकार के फैब्रिक के ऊपर सोहराई पेंटिंग की जाती है.
सबसे महंगी साड़ी 12000 की
सोहराई के चित्रों को मशीनों के बजाय कलाकार अपने हाथों से साड़ियों पर उकेरते हैं. इसमें आर्टिफिशियल कलर इस्तेमाल होता है. एक साड़ी के ऊपर सोहराई पेंटिंग करने में 1 कलाकार को लगभग 3 दिन का समय लगता है. यहां अभी 10 कलाकार साड़ियों के ऊपर सोहराई पेंटिंग करते हैं. इन साड़ियों की शुरुआती कीमत 5000 है. वही सबसे महंगी 12000 तक की साड़ी उपलब्ध है. इन साड़ियों को इंस्टाग्राम यूजर आईडी soviour_sohorai_shop पर बेचा जाता है. साथ ही ऑफलाइन प्रदर्शनी में बेचा जाता है.
क्या है सोहराई पेंटिंग
सोहराई कला भारत की प्राचीनतम कला में से एक है. 5 हज़ार साल से अधिक पुरानी पेंटिग हजारीबाग की इस्को गुफा में आज भी मौजूद है. यह आदिवासी लोगों की पारंपरिक कला है, जिसे वो खुशी के मौके जैसे विवाह, बच्चे का जन्म, फसल की कटाई आदि पर घर की दीवारों पर बनाया करते थे. साल 2021 में इसे जीआई टैग भी मिल चुका है. यह पेंटिंग मुख्यता: झारखंड के हजारीबाग, चतरा और रामगढ़ जिले के क्षेत्रों में दिखती है. सोहराई कला को मुख्यतः: महिलाएं तैयार करती हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 31, 2024, 21:00 IST