शिमला में ‘आंखे री खड़कन’ का मंचन, पद्मश्री विद्यानंद सरैक ने किया नाटक का रूपांतरण

पंकज सिंगटा/शिमलाः आसरा संस्था द्वारा ‘आंखे री खड़कन’ नाटक का मंचन किया गया. यह नाटक पहाड़ी पारंपरिक परिवेश में प्रस्तुत किया गया. यह नाटक गुरु रविंद्र नाथ टैगोर की रचना आंख की किरकिरी का रूपांतरण है, जिसे पद्मश्री विद्यानंद सरैक द्वारा करियाला शैली में रूपांतरित कर ‘आंखे री खड़कन’ नाटक लिखा गया है. कलाकारों द्वारा जिला सिरमौर के जालग के हाब्बी मानसिंह कला केंद्र में इसका मंचन किया गया. नाटक में कुल 25 कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया.

आसरा संस्था के प्रभारी जोगेंद्र हाब्बी ने बताया कि जिला सिरमौर की उप तहसील पझौता के जालग में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रदर्शन का आयोजन किया गया, जिसमें ‘आंखे री खड़कन’ नाटक का मंचन किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ पद्मश्री विद्यानंद सरैक द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज लोकवादन के साथ हुआ. लोक वाद्य यंत्रों पर आसरा के लोक कलाकारों द्वारा नौगत की प्रस्तुति दी गई. उसके पश्चात नाटक का मंचन किया गया. यह मंचन पूरी तरह पहाड़ी पारंपरिक परिवेश में किया गया. कला केंद्र के मंच पर सेट लगाकर ग्रामीण परिवेश को दर्शाते प्रत्येक कलाकार ने अपने किरदार को बेहतरीन ढंग से निभाया और दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी.

पद्मश्री विद्यानंद सरैक ने सराहे कलाकार
नाटक के मंचन के पश्चात कार्यक्रम के मुख्यातिथि पद्मश्री विद्यानंद सरैक ने बताया कि वह प्रत्येक कलाकार के किरदार से बहुत प्रभावित हैं. नाटक के प्रदर्शन में प्रत्येक पात्र ने बड़ी मेहनत और लग्न से अपने किरदार का संजीदगी के साथ अभिनय किया है. सरैक ने आसरा संस्था के सभी कलाकारों को नाटक के सफल मंचन के लिए बधाई दी.

25 कलाकारों ने लिया नाटक में भाग
आसरा संस्था द्वारा पद्मश्री विद्यानंद सरैक व जोगेंद्र हाब्बी के निर्देशन में इस नाटक को गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया है. लोकनाट्य के पात्रों में मुख्य भूमिका में रामलाल, गोपाल, चमन, संदीप, सरोज, अनु, जोगेंद्र, सुनील, अमीचंद, ओम प्रकाश आदि कलाकारों सहित 25 कलाकार शामिल हुए.

इस विषय पर प्रकाश डालता नाटक
यह लोकनाट्य दर्शाता है कि किस प्रकार एक युवक स्त्री के प्रेम में पड़कर अपनी बूढ़ी मां को भी भुल जाता है और कुछ समय पश्चात अपनी स्त्री को छोड़कर अन्य स्त्रियों से प्रेम करने लगता है. इस लोकनाट्य में आज के युवाओं का स्त्री प्रेम में डूब कर माता-पिता को भूल जाना व अपमानित करना, अपनी पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्री के साथ प्रेम करना और आज के कुछ युवाओं में चरित्रहीनता और परिवार के प्रति कर्तव्य विमुखता आदि बुराइयों पर प्रहार किया गया है.

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