लुधियाना नगर निगम चुनाव: आम आदमी पार्टी बनी सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन मेयर की सीट के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति

लुधियाना नगर निगम चुनाव: आम आदमी पार्टी बनी सबसे बड़ी पार्टी, लेकिन मेयर की सीट के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति

पंजाब के लुधियाना में नगर निगम चुनाव में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन मेयर के पद के लिए जरूरी 48 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर सकी। आप ने 41 वार्ड जीते, लेकिन उसे मेयर चुनने के लिए बहुमत हासिल नहीं हुआ। अब मेयर का चुनाव गठबंधन के समर्थन से होगा। अगर आप मेयर चुनती है तो सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के पद गठबंधन की पार्टी को देने पड़ सकते हैं।

कांग्रेस को बड़ा झटका: 2018 की 63 सीटों से सिमटकर 30 पर आई

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 63 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार पार्टी 30 सीटों तक सिमट गई है। वहीं भाजपा ने 19 सीटों पर विजय प्राप्त की है। शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ 2 सीटें मिलीं और तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की। कांग्रेस के इस प्रदर्शन ने उसकी स्थिति को कमजोर किया है।

आप के विधायकों को भी बड़ा झटका: पत्नियां हार गईं

नगर निगम चुनाव नतीजों ने आप विधायकों को भी बड़ा झटका दिया है। विधायक गुरप्रीत बस्सी गोगी की पत्नी सुखचैन कौर बस्सी और विधायक अशोक पाराशर पप्पी की पत्नी मीनू पाराशर हार गईं। सुखचैन कौर बस्सी को कांग्रेस की परमिंदर कौर ने वार्ड नंबर 61 से हराया, जबकि मीनू पाराशर को भाजपा की पूनम रतड़ा ने वार्ड नंबर 77 से हराया।

कांग्रेस के लिए भी झटका: भारत भूषण आशु की पत्नी की हार

कांग्रेस के पूर्व कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु की पत्नी ममता आशु को भी हार का सामना करना पड़ा। ममता आशु को आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार गुरप्रीत सिंह ने वार्ड नंबर 60 से हराया।

आप के कुछ प्रमुख परिवारों में जीत

इसके बावजूद, आप के कुछ प्रमुख परिवारों ने जीत दर्ज की। विधायक अशोक पाराशर के भाई राकेश पाराशर ने वार्ड नंबर 90 से, विधायक मदन लाल बग्गा के बेटे अमन बग्गा ने वार्ड नंबर 94 से और विधायक कुलवंत सिंह सिद्धू के बेटे युवराज सिद्धू ने अपने-अपने वार्ड से जीत हासिल की।

कम मतदान का असर: चुनाव नतीजों पर पड़ा प्रभाव

लुधियाना में इस बार मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी गई। केवल 46.95% मतदाताओं ने वोट डाले, जबकि 2018 में यह आंकड़ा 59.08% था। पुरुषों में 48.37% और महिलाओं में 45.34% मतदान हुआ, जबकि थर्ड-जेंडर श्रेणी में केवल 15.53% मतदान हुआ। कम मतदान ने चुनाव नतीजों को प्रभावित किया और राजनीतिक दलों के लिए चुनौती पैदा की।

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