नई दिल्ली: रूस और यूक्रेन के बीच जंग के करीब ढाई साल हो गए. हजारों मौतों के बाद भी यूक्रेन और रूस के बीच जंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. यही वजह है कि पूरी दुनिया अब युद्ध खत्म कराने और शांति बहाल करने की कवायद में जुट गई है. जी हां, रूस-यूक्रेन जंग खत्म कराने के लिए दुनिया के करीब 100 से अधिक देश एक साथ एक मंच पर आ गए हैं. स्विट्जरलैंड में शनिवार से यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन शुरू हो गया. इस इंटरनेशनल समिट में यूक्रेन युद्ध पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. इस सम्मेलन में लगभग 100 देशों के प्रधानमंत्री और अन्य उच्च-स्तरीय प्रतिनिधियों के साथ-साथ इंटरनेशनल संगठन भी हिस्सा ले रहे हैं. इस समटि में भारत भी शामिल है.
सबसे खास बात यह है कि यूक्रेन पीस समिट में रूस और चीन भाग नहीं ले रहा है. मगर भारत बगैर किसी बात की चिंता किए इसमें शामिल हुआ है. उसे इस बात की चिंता नहीं है कि रूस क्या सोचेगा. स्विट्जरलैंड के ल्यूसर्न शहर के निकट बुर्गेनस्टॉक रिजॉर्ट में यह समिट हो रहा है. इस यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन में भारत की ओर से इंडिया का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) पवन कपूर कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारत एकमात्र साउथ एशियन कंट्री (दक्षिण एशियाई) है, जो इस यूक्रेन पीस समिट में हिस्सा ले रहा है. बात-बात पर शेखी बघारने वाले चीन और पाकिस्तान इस शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं.
पाकिस्तान-चीन ने खड़े किए हाथ
इस यूक्रेन पीस समिट में शामिल होने वाले प्रतिभागी देशों की लिस्ट सामने आई है. इस लिस्ट के मुताबिक, भारत एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है, जो सम्मेलन में हिस्सा ले रहा है. कुल 90 से अधिक देशों ने शिखर सम्मेलन में अपनी भागीदारी की पुष्टि की है. इनमें आधे यूरोप से हैं. संयुक्त राष्ट्र सहित कई संगठन भी सम्मेलन में शामिल होंगे. इस समिट में रूस को न्योता नहीं भेजा गया है. जबकि स्विजरलैंड ने चीन औप पाकिस्तान को न्योता भेजा था. मगर वे दोनों अपनी मर्जी से इस समिट में शामिल नहीं हो रहे हैं. ये दोनों रूस के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहे हैं.
चीन क्यों नहीं हो रहा शामिल
यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन के निमंत्रण को अस्वीकार करते हुए चीन ने कहा कि चूंकि रूस बैठक में शामिल नहीं होगा. इसलिए शांति शिखर सम्मेलन में यूक्रेन की एकतरफा उपस्थिति निरर्थक हो जाएगी. बीजिंग ने कहा है कि सम्मेलन की बजाय यह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के लिए अपने ‘शांति सूत्र’ को बढ़ावा देने का एक मंच है. पाकिस्तान ने भी रूस का हवाला देकर इस समिट में जाने से इनकार कर दिया है. जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान और चीन दोनों रूस को नाराज नहीं करना चाहते हैं. वे दोनों मानते हैं कि अगर रूस अगर इस समिट में शामिल नहीं हो रहा है तो वो इस समिट में जाकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं.
भारत ने दिखाया जिगरा
हालांकि, भारत को इस बात की चिंता नहीं है कि उसके बारे में कौन देश क्या राय रखता है. भारत शुरू से ही रूस-यूक्रेन जंग में शांति की वकालत करता रहा है. पीएम मोदी कई बार अलग-अलग मंचों पर दोहरा चुके हैं कि रूस-यूक्रेन जंग में वार्ता के जरिए ही शांति बहाल हो सकती है. रूस भारत का काफी करीबी और अच्छा दोस्त रहा है. मगर बात जब विश्व शांति और मानवता की है तो भारत ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है. भारत ने चीन-पाकिस्तान की तरह तटस्थ रहने की कोशिश नहीं की है. जब दुनिया में दो देश आपस में कत्लेआम मचा रहे हों तो ऐसे में तटस्थ रहने का कोई मतलब नहीं. यही वजह है कि भारत इस समिट में शामिल हो रहा है.
कौन-कौन शामिल, क्या चर्चा?
इस समिट में करीब 50 से अधिक देशों के प्रधानमंत्री शामिल हो रहे हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सम्मेलन में मौजूद होंगे. शिखर सम्मेलन का उद्देश्य यूक्रेन में शांति की राह तैयार करना है. ये सभी देश यूक्रेन से अनाज निर्यात, रूस के कब्जे वाले ज़ापोरिज्ज्या परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सुरक्षा और कैदियों के आदान-प्रदान सहित कई मुद्दों पर चर्चा करेंगे. यह बैठक यूक्रेन की पहल पर हो रही है और राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और कई नेता इटली में जी7 की बैठक के बाद सीधे यहां पहुंच कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं.
एक और समिट होने की उम्मीद
स्विट्जरलैंड को उम्मीद है कि इस साल इसी तरह का एक और सम्मेलन आयोजित किया जाएगा और इसमें मॉस्को भी शामिल होगा. रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण कर युद्ध शुरू किया था. इस युद्ध में सैकड़ों सैनिक मारे गए या घायल हुए हैं, साथ ही आम नागरिक भी हताहत हुए हैं. यूक्रेन का बुनियादी ढांचा भी रूस की गोलीबारी में तहस नहस हो गया है. यूक्रेन के कई शहर तो पूरी तरह खंडहर बन चुके हैं. यूक्रेन इस जंग में इसलिए अब तक डंटा है, क्योंकि उसे नाटो देशों और पश्चिम का समर्थन मिल रहा है.
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FIRST PUBLISHED : June 16, 2024, 07:05 IST