उत्तर प्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह (Vir Bahadur Singh) मुश्किल से 3 साल कुर्सी पर रह पाए. उनके सीएम बनने की कहानी भी दिलचस्प है. सितंबर 1985 में अचानक राजीव गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस ने एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया. उन्हें सीएम बने मुश्किल से 6 महीने हुए थे. राजीव के करीबी और संसदीय कार्यमंत्री हरकिशन लाल भगत, AICC के जीके मूपनार और कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी लखनऊ भेजे गए. उन्होंने पार्टी के 296 विधायकों और एमलसी के साथ मीटिंग की. इसके बाद वीर बहादुर सिंह को नया मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान हुआ.
CM की कुर्सी पर निगाहें
ठवरिष्ठ पत्रकार श्यामलाल यादव (Shyamlal Yadav) रूपा पब्लिकेशन से प्रकाशित अपनी नई किताब ”एट द हार्ट ऑफ पावर: द चीफ मिनिस्टर्स ऑफ उत्तर प्रदेश” (At the Heart of Power: The Chief Ministers of Uttar Pradesh) में लिखते हैं कि साल 1985 के विधानसभा चुनाव में एनडी तिवारी और वीपी सिंह ने अधिकतर सीटिंग विधायकों का टिकट काट दिया, क्योंकि उनके खिलाफ जनता में गुस्सा था. जबकि दूसरी ओर वीर बहादुर सिंह ने अपने करीबी कम से कम 150 समर्थकों को टिकट दिलवाया. जिसमें 100 के आसपास जीत भी गए. ज्यादातर उन्हीं की ठाकुर बिरादरी के थे.
राजीव के जमाने में खुली किस्मत
श्यामलाल यादव लिखते हैं कि वीर बहादुर सिंह की निगाहें जून 1980 से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थीं, लेकिन तब संजय गांधी और अरुण नेहरू की टीम ने वीपी सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया. फिर अगस्त 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एनडी तिवारी को गद्दी सौंप दी. आखिरकार राजीव के जमाने में वीर बहादुर सिंह की किस्मत ने खुली और 50 की उम्र में मुख्यमंत्री बने.
सचिवालय के गेट पर ताला
CM बनने के बाद वीर बहादुर सिंह जब पहले दिन मुख्यमंत्री ऑफिस पहुंचे तो उन्होंने एक दिलचस्प ऑर्डर पास किया. उन्होंने आदेश दिया कि सारे मंत्रियों को हर हाल में सुबह 9:45 तक कार्यालय आना होगा. सचिवालय के गार्डों को कह दिया कि 10:15 पर सारे गेट बंद कर दिए जाएं और चाबी उनको सौंप दी जाए. सीएम ने सुरक्षा गार्डों को यहां तक कह दिया कि अगर निर्धारित समय के बाद कोई मंत्री सचिवालय आता है तो उनको अंदर न घुसने दें.
वीर बहादुर सिंह (फाइल फोटो)
IAS अफसरों पर कार्रवाई
इस आदेश की पहली गाज लोकपति त्रिपाठी पर गिरी, जो स्वास्थ्य मंत्री हुआ करते थे. CM के आदेश के पहले ही हफ्ते त्रिपाठी, देरी से सचिवालय पहुंचे. तब तक गार्ड्स ने गेट बंद कर दिया था और चाबी मुख्यमंत्री को सौंप दी थी. श्यामलाल यादव लिखते हैं कि वीर बहादुर सिंह ने अपने मंत्रियों को हिदायत दी कि जब तक बहुत जरूरी काम ना हो, बार-बार दिल्ली भाग कर न जाएं. अधिकारियों को भी दोटूक कह दिया कि सरकारी योजनाओं को लागू करने में किसी तरीके की हीला-हवाली बर्दाश्त नहीं करेंगे.
ब्यूरोक्रेसी में खलबली
वीर बहादुर सिंह सिर्फ आदेश देने वाले मुख्यमंत्री नहीं थे, बल्कि जो कहते थे वह करते भी थे. उन्होंने आदेश न मामने वाले अफसरों को सस्पेंड करना शुरू कर दिया. पहला एक्शन बाराबंकी के डीएम पर हुआ, जो बाढ़ से निपटने के लिए जरूरी इंतजाम करने में नाकाम रहे थे. मुख्यमंत्री ने विजिलेंस डिपार्टमेंट को सीनियर आईएएस अफसरों पर मुकदमा तक दर्ज करने का आदेश दे दिया. उनके आदेश से नौकरशाही में खलबली मच गई थी.
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FIRST PUBLISHED : June 8, 2024, 14:33 IST