मधुबनी. धन्नो और बसंती को कौन नहीं जानता. लोकप्रिय और सुपर डुपर हिट फिल्म शोले की बसंती और उसकी घोड़ी धन्नो आज भी चर्चा में रहते हैं. बिहार के मधुबनी में एक नहीं दर्जनों धन्नों हैं जो दिनभर सवारी ढोती हैं. ये पर्यावरण की दोस्त हैं. इनसे न तो वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलता है और न ही दुर्घटना का डर रहता है.
देश भर में अब शायद ही कहीं घोड़ा गाड़ी चलती होंगी. लेकिन हम आपको दिखाने जा रहे हैं मधुबनी जिले का एक लोकप्रिय वाहन. यहां अभी भी सवारी के लिए लोकल ट्रांसपोर्ट के तौर पर घोड़ा गाड़ी ही चलती हैं. इनका किराया बहुत कम है. साथ ही ये वातावरण शुद्ध रखने में मदद करती हैं. इनसे किसी तरह का वायु या ध्वनि प्रदूषण नहीं फैलता.
इंटर नेशनल सर्विस
मधुबनी जिले के अंतर्गत आने वाले शहर जयनगर में अभी भी लोग अपनी आवाजाही के लिए तांगा गाड़ी( घोड़ा गाड़ी) का इस्तेमाल करते हैं. तांगा गाड़ी की सवारी जयनगर से नेपाल के कई गांव जैसे सिरहा, मारर, बेतौना, खटौका बॉर्डर तक जाती है. भारत में जयनगर के आसपास के गांव बेला, बेल्ही कमलाबारी के बीच तांगा गाड़ी ही चलती हैं.
पुरानी संस्कृति की हिफाजत
जयनगर बिहार का वह शहर है, जहां अभी भी घोड़ा गाड़ी की सवारी होती है. एक गाड़ी पर लगभग 6,7 लोग बैठ कर जाते हैं. पुराने जमाने में काठ गाड़ी यानी की लकड़ी की बनी गाड़ी को घोड़ा खींचता था. इसी परंपरा को जयनगर ने अभी भी बरकरार रखा है. अभी भी काठ (लकड़ी) की बनी गाड़ी घोड़ा खींचता है. इसकी सवारी करना बहुत अनंत दायक है.
पर्यावरण की दोस्त घोड़ा गाड़ी
तांगा भारतीय पुरानी परंपरा के साथ-साथ पर्यावरण का भी दोस्त है. ये वातावरण को शुद्ध रखता है. इसमें पेट्रोल- डीजल या वायु को प्रदूषित करने वाली कोई चीज इस्तेमाल नहीं होती. साथ ही किसी तरह का शोर या हॉर्न की आवाज भी नहीं होती. कह सकते हैं वातावरण शुद्ध रखने में तांगा गाड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.
दुर्घटना का डर नहीं
लोग तांगा गाड़ी से यात्रा कर सुरक्षित महसूस करते हैं., लकड़ी की इस गाड़ी की स्पीड बहुत कम होती है इसलिए दुर्घटना का डर नहीं रहता.जयनगर में तांगा गाड़ी चलने से रोजगार के अवसर भी बने हुए हैं. बिना पढ़े लिखे लोग और बेरोजगार लोग तांगा गाड़ी चला कर अपना जीवन यापन करते हैं. अपने और अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं. एक तरह से यह रोजगार है. इसके साथ-साथ जिसकी आमदनी अच्छी नहीं है. उसे बहुत कम पैसे में इसकी सवारी करने मिल जाती है. लोग अपने-अपने घर इसकी सवारी कर पहुंच जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 3, 2024, 20:31 IST