Mukhtar Ansari death news: पूर्वांचल में बाहुबलियों की गिनती में शुमार मुख्तार अंसारी का गुरुवार को निधन हो गया. बताया जा रहा है कि उसे दिल का दौरा पड़ा था. मुख्तार तो चला गया, लेकिन उससे जुड़े तमाम ऐसे किस्से हैं जिन्हें भूला नहीं जा सकता. उन्हीं में से एक वाक्या है उत्तर प्रदेश के पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह का. शैलेन्द्र सिंह जनवरी 2004 में एसटीएफ की वाराणसी यूनिट के प्रभारी डिप्टी एसपी थे. दरअसल, यहां पर उन्हें माफिया व बाहुबली मुख्तार अंसारी समेत कृष्णानंद राय पर नजर रखने के लिए भेजा गया था. वर्ष 2002 में कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को मुहम्मदाबाद सीट से चुनाव हरा दिया. यह सीट कई बार से अंसारी बंधुओं के कब्जे में थी. ऐसे में मुख्तार अपने भाई की हार को पचा नहीं पाया.
यहां से शुरू हुई थी असल कहानी
2002 में मुख्तार अंसारी भी मऊ से विधायक चुन लिया गया, लेकिन दोनों के बीच गैंगवार शुरू हो चुका था. ऐसे में वर्ष 2004 में एसटीएफ को दोनों गैंग पर नजर रखने को कहा गया. पूर्व डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह ने कई चैनलों को दिए गए अपने इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने दोनों के फोन की रिकॉर्डिंग शुरू करा दी. इस दौरान एक दिन मुख्तार की बातचीत सुनकर वह हैरान रह गए. मुख्तार किसी से एलएमजी यानि लाइट मशीन गन की बात कर रहा था. उसने कहा कि उसे यह गन हर हाल में चाहिए, क्योंकि वह इससे कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था. दरअसल बात यह थी सुरक्षा कारणों से कृष्णानंद राय बूलेटप्रूफ गाड़ी से चलते थे, जिसे लाइट मशीन गन ही भेद सकती थी. वर्ष 2003 में भी उन पर जानलेवा हमला हुआ था, लेकिन वह बच गए थे.
पुलिस ने बरामद की गन
शैलेन्द्र सिंह ने बताया था कि मुख्तार ने इस गन का सौदा एक करोड़ रुपये में तय किया था. इसकी सूचना उन्होंने अपने आला अधिकारियों को दी, जिसके बाद पुलिस ने मुख्तार से डील करने वाले बाबूलाल यादव को उठा लिया. बाबूलाल ने बताया कि लाइट मशीन गन उसके पास नहीं, बल्कि उसके मामा के पास है. पुलिस ने इस मामले में मुख्तार अंसारी पर केस भी दर्ज किया और पोटा (आतंकवाद निरोधी अधिनियम 2002) भी लगाया गया. एलएमजी भी बरामद कर लिया, लेकिन गिरफतार नहीं कर पाए. जब यह बात मुख्तार को पता चली, तो उसने तत्कालीन सरकार में मुखिया मुलायम सिंह से बात करके इस पूरे केस को ही रद्द करा दिया, क्योंकि उस समय उसने बसपा को तोड़कर मुलायम की सरकार बनवाई थी, इसलिए सरकार में उसकी हर बात मानी जाती थी.
देना पड़ा इस्तीफा, छोड़ दी नौकरी
इस घटना के बाद उसने आईजी डीआईजी एसपी समेत कई अधिकारियों के तबादले करा दिए. एसटीएफ यूनिट को वापस लखनऊ बुला लिया गया. शैलेन्द्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन पर केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया. वरिष्ठ अधिकारियों ने उनको बताया कि मुख्यमंत्री आपसे बहुत नाराज हैं. वह मिलकर अपनी बात रखना चाहते थे, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी, जिसके बाद उन्होंने अपने पद और नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उनके खिलाफ जांच बैठा दी गई, उन पर मुकदमा दर्ज किया गया और गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. रिटायरमेंट के बाद भी उनकी जांच चलती रही. 17 साल तक उन्होंने प्रताड़ना झेली. बाद में 2021 में योगी सरकार ने कोर्ट के आदेश पर शैलेन्द्र सिंह के खिलाफ दर्ज किए गए सभी मामले वापस ले लिए.
1991 में पीसीएस बने थे शैलेन्द्र
शैलेन्द्र सिंह मूल रूप से चंदौली के सैयदराजा गांव के रहने वाले हैं. वह वर्ष 1991 में यूपी पीएससी में चयनित हुए थे. गांव से ही उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई की. शैलेंद्र के पिताजी भी यूपी सरकार में डीएसपी थे. 8वीं के बाद शैलेंद्र देवरिया चले गए और यहीं से उन्होंने हाई स्कूल किया. इंटरमीडिएट उन्होने बस्ती जनपद से किया है. ग्रेजुएशन के लिए इलाहाबाद पहुंचे और यहीं उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी की और वर्ष 1991 में डिप्टी एसपी के पद पर उनका सेलेक्शन हो गया.
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FIRST PUBLISHED : March 29, 2024, 13:18 IST