माता-पिता करते हैं चूड़ियों का बिजनेस, बेटी ने इस अनोखे सब्जेक्ट पर किया PHD, जानें कौन हैं डॉ. सलमा शाईन

उज्जैन. मध्य प्रदेश के उज्जैन में तराना तहसील की रहने वाली डॉ. सलमा शाईन के परिवार का व्यवसाय चूड़ी बनाने और विक्रय के कार्य से जुड़ी है. वहीं उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय से सलमा ने स्त्री-पुरुष के श्रृंगार प्रसाधन, उनकी संस्कृति और साहित्यिक अभिव्यक्ति पर शोध कर देश की पहली पीएचडी उपाधि प्राप्त की है. वहीं विक्रम विश्वविद्यालय में 9 अप्रैल को हुए 28 वें दीक्षांत समारोह के दौरान अलग-अलग विषय पर पीएचडी करने वालों को उपाधि दी गई. उपाधि भी मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल के हाथ विद्यार्थियों को वितरित की गई, लेकिन एक शोधार्थी ने पारंपरिक से लेकर आधुनिक समय तक स्त्री-पुरुष के श्रृंगार प्रसाधन, उनकी संस्कृति और साहित्यिक अभिव्यक्ति पर शोध कर देश की पहली पीएचडी उपाधि प्राप्त की है.

उज्जैन जिले की तारना में रहने वाली सलमा शाइन बचपन से ही अपने परिवार के साथ मिलकर लाख, कांच, ब्रास आदि की चूड़ियों के निर्माण और व्यवसाय में मनिहार कला का उपयोग किया है. लाख की चूड़ियों पर नग, कांच आदि चढ़ाते हुए उन्हें आकर्षक रूप दिया जाता है. परिवार में मनिहार कला का काम पुरानी पीढ़ी से किया जाता आ रहा है. सलमा बचपन से ही इस कला में निपुण थी. सलमा को विक्रम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा के द्वारा बताए गए प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला. सलमान ने चूड़ियों पर किए जाने वाले मनिहार कला पर रिसर्च पेपर लिखा था. इसमें स्त्री-पुरुष के श्रृंगार और मनिहार कला का उल्लेख किया गया था. इस रिसर्च पेपर को सराहना मिली.

4 साल में पूरी की पीएचडी

डॉ. सलमा शाईन ने बताया कि उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय से 4 साल में पीएचडी पूर्ण की है. इसमें महिलाओं के पारंपरिक से लेकर आधुनिक समय तक के आभूषण वस्त्र,रूप सौन्दर्य और रूप श्रृंगार सहित पुरुषों के आभूषण, घड़ी, चेन अंगूठी वस्त्र रूप सौन्दर्य को शामिल किया गया और कैसे श्रृंगार बदलता गया और आधुनिक समय में किस तरह का श्रृंगार किया जाता है. प्रो. प्रज्ञा थापक और प्रो. शर्मा के निर्देशन में स्त्री-पुरुष के पारंपरिक श्रृंगार ​​​​​​​प्रसाधन पर मालवी लोक साहित्य एवं संस्कृति के साथ अनुशीलन करते हुए शोध कार्य प्रारंभ किया.

इसके लिए पारंपरिक से लेकर आधुनिक समय तक स्त्री- पुरुषों द्वारा किए जाने वाले श्रृंगार को केंद्रित रखते हुए प्राचीन समय से प्रयुक्त होने वाली श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण पर 5 साल के दौरान शोध कार्य पूर्ण किया. उन्होंने कई जगह पर जाकर फोटोग्राफ लिए और लोक समुदाय से साक्षात्कार, वाचिक साहित्य, संस्कृति का सर्वेक्षण और विवेचन किया.

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FIRST PUBLISHED : April 14, 2024, 18:08 IST

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