Gestational Diabetes In Pregnency: प्रेग्नेंसी का समय जितना सुखद, उतना चुनौतीपूर्ण भी होता है. इसलिए बेबी प्लान करने से पहले कुछ समझदारी दिखाना बेहद जरूरी है. बता दें, गर्भावस्था में हर महिला की स्थिति अलग होती है. कुछ महिलाएं 9 महीने पूरी तरह स्वस्थ रहती हैं, तो कुछ में बीमारियों के चपेट में आने का जोखिम बढ़ जाता है. डायबिटीज ऐसी ही गंभीर बीमारियों में से एक है. इसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं. इस बीमारी के वैसे तो कई कारण हैं, लेकिन शरीर का बढ़ा वजन सबसे बड़ा दोषी होता है. दरअसल, प्लेसेंटा एक हार्मोन बनाता है. यह हार्मोन शरीर को इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से रोकता है. इसलिए जब हमारे शरीर में गर्भावस्था के दौरान इंसुलिन का सही उत्पादन नहीं कर पाता, तो तो गर्भवती महिला डायबिटीज का शिकार हो जाती है.
राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. अमृता साहा बताती हैं कि, कई मामलों में जेस्टेशनल डायबिटीज उन महिलाओं को भी हो जाती है, जिन्हें पहले कभी यह समस्या नहीं थी. इस बीमारी की अनदेखी करने से महिला के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए भी खतरनाक है. अब सवाल है कि प्रेग्नेंसी में किन महिलाओं को ज्यादा डायबिटीज का खतरा? कितने दिन में चलता है पता? क्या है उपचार? आइए जानते हैं इस बारे में-
जेस्टेशनल डायबिटीज का कब चलता है पता?
डॉ. अमृता साहा बताती हैं कि, प्रेग्नेंसी में मोटापा डायबिटीज का कारण बन जाता है, जो जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत के लिए घातक हो सकता है. हालांकि, ये जरूरी नहीं है कि मोटापा ही जेस्टेशनल डायबिटीज का कारण हो. शुरुआत में ये बीमारी आसानी से पकड़ में नहीं आती है, लेकिन, 20 हफ्ते या 5 महीने के बाद ब्लड टेस्ट कराने पर बढ़े ब्लड शुगर लेवल के बारे में पता चलता है. इसलिए 24 से 28 सप्ताह के बीच जेस्टेशनल डायबिटीज टेस्ट कराना जरूरी होता है.
प्रेग्नेंसी में इन महिलाओं को डायबिटीज का खतरा अधिक?
फैमिली हिस्ट्री: डॉक्टर की मानें तो जिन महिलाओं की फैमिली में डायबिटीज की हिस्ट्री है या यूं कहें कि जिनके घर में मां, दादी, पिता या भाई को डायबिटीज है. ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था में डायबिटीज के चांसेस बढ़ जाते हैं.
शरीर का बढ़ा वजन: एक स्टडी के अनुसार, ओवरवेट महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा ज्यादा रहता है. डॉ. साहा बताती हैं कि, जिन महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स 30 से ऊपर होता है. उन महिलाओं में भी जेस्टेशनल डायबिटीज का जोखिम बढ़ जाता है.
पहली प्रेग्नेंसी की हिस्ट्री: अगर किसी महिला को पहली प्रेग्नेंसी में जेस्टेशनल डायबिटीज रही है, तो दूसरी प्रेग्नेंसी में भी इसके विकसित होने का खतरा बना रहता है.
पीसीओडी के दौरान: जो महिलाएं पीसीओडी से ग्रसित हैं या अन्य किसी हार्मोनल प्रॉब्लम से जूझ रही है,तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना बढ़ जाती है.
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बचाव के उपाय: डॉ. अमृता साहा के अनुसार, हेल्दी डाइट लेने से इस समस्या से बचा जा सकता है. 3 बड़ी मील लेने के बजाय हर दो घंटे में छोटी मील लेना जरूरी है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान एक्टिव रहना भी जरूरी है. जितना संभव हो हल्का-फुल्का वर्कआउट करें. इसके लिए योगा, मेडिटेशन आदि कर सकते हैं. ऐसा करने से जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा कम हो सकता है. हालांकि, किसी भी स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूरी है.
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FIRST PUBLISHED : June 8, 2024, 09:22 IST