Bone marrow Transplant in Delhi: ब्लड कैंसर या थैलीसीमिया जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे छोटे बच्चों के लिए अच्छी खबर है. अब उन्हें अपनी बीमारी से परमानेंट निजात मिल सकेगी और वह भी मुफ्त में. अब बच्चों को बार-बार खून चढ़वाने, खून बदलवाने, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी करवाने के लिए अस्पताल के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. दिल्ली के सरकारी सफदरजंग अस्पताल में जल्द ही बच्चों के लिए परमानेंट इलाज बोन मेरो ट्रांसप्लांट शुरू होने जा रहा है. खास बात है कि भारत में बोन मेरो ट्रांसप्लांट की जरूरत वाले 80 फीसदी मरीज सिर्फ पैसे की तंगी के चलते इन बीमारियों को झेलते रहते हैं क्योंकि प्राइवेट अस्पतालों में बोन मेरो ट्रांसप्लांट कराने का खर्च 25 से 30 लाख रुपये तक आता है.
बता दें कि भारत की एक बड़ी आबादी खून संबंधी कुछ ऐसे गंभीर रोगों से जूझ रही है जिनके लिए जीवन भर इलाज कराना पड़ता है या फिर अगर उनका परमानेंट इलाज है भी तो प्राइवेट अस्पतालों में इतना महंगा है कि उसे वहन करना सब के बस में नहीं है. जबकि सरकारी अस्पतालों में बहुत कम अस्पतालों में यह सुविधा है. उसमें भी मरीजों की इतनी लंबी लाइन कि साल भर तक नंबर आना मुश्किल है. ऐसी ही कुछ बीमारियां हैं जैसे ब्लड कैंसर, ल्यूकेमिया, मल्टीपल मायलोमा, थेलीसीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया, सिकल सेल एनीमिया आदि, जिनका परमानेंट इलाज है तो सही लेकिन बहुत महंगा है.
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जल्द शुरू होगा बच्चों का इलाज
सफदरजंग अस्पताल के एडिशनल एमएस डॉ. पीएस भाटिया ने बताया कि अस्पताल में जल्द ही बच्चों का बोन मेरो ट्रांसप्लांट शुरू होगा. फिलहाल एडल्ट का बीएमटी यहां हो रहा है. इसकी तैयारियां अस्पताल में चल रही हैं, हालांकि यह पूरी प्रक्रिया किस तरह होगी इसे लेकर मंत्रालय की तरफ से अभी गाइडलाइंस आनी हैं.
दिल्ली का होगा पहला सरकारी अस्पताल
बता दें कि बोन मेरो ट्रांसप्लांट की सुविधा प्राइवेट अस्पतालों के अलावा दिल्ली एम्स में भी है, हालांकि एम्स स्वायत्त संस्था है और यहां पर भी बोन मेरो ट्रांसप्लांट में करीब 2 से 10 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है. वहीं अब सफदरजंग पहला अस्पताल है जहां फ्री बोन मेरो ट्रांसप्लांट एडल्ट का हो रहा है और बच्चों का भी शुरू होगा. सफदरजंग के अलावा आरएमएल और लेडी हार्डिंग में भी इसे शुरू किया जाना था.
इन बीमारियों में होगा बोन मेरो ट्रांसप्लांट
चूंकि बोन मेरो ट्रांसप्लांट थेलीसीमिया से लेकर ब्लड कैंसर, सिकल सेल एनीमिया और ल्यूकेमिया आदि कई बीमारियों में किया जाता है. हालांकि थैलीसीमिया का बोझ भारत में ज्यादा है, क्योंकि यहां हर साल 10 से 15 हजार बच्चे थैलीसीमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं. यहां तक कि थैलीसीमिया का हर आठवां मरीज भारत में मौजूद है. यही वजह है कि केंद्र सरकार भी थैलीसीमिया और सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के लिए जरूरी कदम उठा रही है.
क्या होता है बोन मेरो ट्रांसप्लांट
बोन मेरो हमारे शरीर की हड्डियों के बीच में पाया जाने वाला लिसलिसा पदार्थ होता है. इसका काम स्वस्थ ब्लड सेल्स का निर्माण करना होता है. जब इसमें खराबी आ जाती है तो यह रक्त कोशिकाओं का निर्माण करना बंद कर देता है या कम कर देता है. ऐसी स्थिति में मरीज में खून बार-बार घटने लगता है और उसे खून चढ़ाना पड़ता है. कई बार रेड ब्लड सेल्स न बनने और आयरन ओवरलोड की वजह से मरीज के अन्य ऑर्गन्स पर असर पड़ने लगता है. ऐसे में खराब हो चुकीं स्टेम सेल्स या बोन मेरो को निकालकर वहां स्वस्थ सेल्स को प्रत्यारोपित करने को ही बोन मेरो ट्रांसप्लांट कहते हैं. ताकि शरीर में रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता रहे.
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Tags: Health News, Lifestyle, Safdarjung Hospital
FIRST PUBLISHED : May 14, 2024, 17:13 IST