पत्नी बेचती थी सब्जी…जनता के चंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ बने MP, आज भी ऑटो और रिक्शा में करते हैं यात्रा

गौरव सिंह/भोजपुर : पत्नी पटना के बिहटा स्थित मायके में रहकर सब्जी बेचती थी. पति जनता के चंदे के बलबूते लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी थे. एक जीप और नंगे पांव आरा लोकसभा का सम्पूर्ण भ्रमण और चुनावी प्रचार प्रसार होता था. जब चुनाव परिणाम आया तो भाकपा-माले से पहली बार आरा लोकसभा से रामशेश्वर प्रसाद चुनाव जीत चुके थे. पहली बार ऐसा जमीन से जुड़ा व्यक्ति सांसद बना था. इस पृष्ठभूमि का व्यक्ति चुनाव जीत जाए, यह पहले के दौर में ही संभव था. फिलहाल उनके बेटे साधारण राजनीतिक कार्यकर्ता हैं. एक पौत्र नौसेना में नौकरी करता है.

हम बात कर रहे हैं 1989 के लोकसभा चुनाव में आरा लोकसभा क्षेत्र से तत्कालीन इंडियन पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के टिकट पर सांसद बने रामेश्वर प्रसाद की. वे कहते हैं कि पहले किसी भी राजनीतिक दल में पैसा और दबंगई के आधार पर टिकट मिलने की परंपरा नहीं थी, लेकिन अब तो ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं.

वाम राजनीति का रहे बड़ा चेहरा
रामशेश्वर प्रसाद वाम राजनीति का बड़ा चेहरा रहे. पटना जिला अंतर्गत बिहटा श्रीरामपुर टोला में अपने साधारण से दो-मंजिले मकान में इकलौते पुत्र और पौत्र के परिवार के साथ रह रहे रामेश्वर प्रसाद कभी बिहार में वाम राजनीति का बड़ा चेहरा रहे थे. आज भी भाकपा माले उन्हें स्टार प्रचारक के सूची में रखी है. उन्होंने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि पहले के नेताओं ने खुद तथा परिवार के लिए कुछ नहीं बनाया. देश के विकास तथा जनता के हित के लिए लड़ाई लड़ी. 1989 में सांसद बनने से पहले वे आरा के बड़हरा प्रखंड में एक कार्यकर्ता थे. चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन शीर्ष नेताओं के दबाव में मैदान में कूदे.

पहले आरा लोकसभा क्षेत्र में थे ये भी इलाके
चुनाव का वाक्या सुनाते हुए उन्होंने कहा कि उस समय आरा लोकसभा क्षेत्र में पटना के मनेर, पालीगंज, बड़हरा, आरा, संदेश और सहार प्रखंड के कुछ गांव शामिल थे. पार्टी की तरफ से एक जीप उपलब्ध कराई गई थी, जिससे पूरे संसदीय क्षेत्र में घूमते थे. एक दिन में 17 से 20 सभाएं होती थीं. कार्यकर्ताओं में काफी जूनून था. नेताओं की प्रचार टीम के लिए कार्यकर्ता गांव में ही घरों में खाना बनवा देते थे. तब बूथ पर बैठने के लिए एजेंट को पैसे नहीं देने पड़ते थे.

कांग्रेस प्रत्याशी बलिराम भगत को 27 हजार मतों से हराया था
1989 में चुनाव में उन्हें 1 लाख 77 हजार मत प्राप्त हुए और इस तरह उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी बलिराम भगत को 27 हजार मतों से हराया था. उसके बाद 1995 में संदेश विधानसभा से विधायक चुने गए, लेकिन 2000 में वो हार गए फिर 2005 में संदेश से विधायक चुने गए, लेकिन उस समय किसी कारण वश शपथ नहीं हुआ और दुबारा चुनाव हुआ तो हार गए. फिर पाटलिपुत्र और नालन्दा से भी लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं मिली. पूर्व सांसद आरा में पार्टी कार्यकम में शामिल होने आए तो पैसेंजर ट्रेन से वो आरा उतरे वहां से ऑटो में बैठ पार्टी कार्यालय पहुंचे.

जब सीएम नीतीश को दिखाया आइना
रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि जब वे सांसद बने तो सांसदों की पेंशन का बिल आया, जिसका उन्होंने विरोध किया. तब बिल रुक गया था. उस समय चंद्रशेखर प्रधानमंत्री हुआ करते थे. ऐसा ही एक वाक्या पटना हवाईअड्डे पर हुआ था हम और उस समय के केंद्रीय कृषि मंत्री नीतीश कुमार दिल्ली जाने के लिए वीआईपी रूप में इंतजार कर रहे थे.

हम अकेले थे और नीतीश कुमार के पास दर्जनों लोग भीड़ लगाए थे. जब सबलोग चले गए तब नीतीश कुमार बोले देख रहे है ना रामशेश्वर बाबू कितनी भीड़ रहती है मेरे पास, तब हमने जवाब दिया कि आपके पास लोग है वो लोभ और लालच में है लेकिन हम ऐसे पार्टी से आते है जहां लोभ और लालच की कोई जगह नहीं जिसके वजह से मेरे पास कोई नहीं है. आगे वर्ष 2004-05 में सांसदों की पेंशन शुरू हुई. पूर्व सांसद ने कहा कि उन्हें पार्टी से ही पेंशन के रूप में डेढ़ हजार रुपये मिलते थे. बाद में पेंशन बिल पास होने पर पहली पेंशन 2004-2005 में 15 हजार रुपये मिले.

Tags: Bihar News, Bihar politics, Local18

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