सृजित अवस्थी/ पीलीभीत : उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में 28 मार्च को एक बाघ को आबादी के बीचों -बीच हजारों ग्रामीणों की मौजूदगी में रेस्क्यू किया गया था. बाघ के रेस्क्यू के 24 घंटे के अंदर कुछ ही दूरी पर एक अन्य बाघ ने आवारा पशु का शिकार कर दिया. वहीं यह पहला मौका नहीं है जब पीलीभीत में ऐसी परिस्थितियां देखने को मिल रही हैं. बीते कुछ सालों से यह तराई के लिए आम बात हो गई है.
पीलीभीत टाइगर रिजर्व से आबादी में पहुंचे बाघों की समस्या को समझने से पहले PTR की भौगोलिक परिदृश्य पर नज़र डालना सबसे आवश्यक है. यह अभ्यारण उत्तरप्रदेश के पीलीभीत व शाहजहांपुर के जंगलों को मिलाकर बना है. हालांकि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में अधिकांश वन क्षेत्र पीलीभीत जिले का ही है. ऐसे में टाइगर रिजर्व का अनुकूल और प्रतिकूल असर दोनों ही पीलीभीत के लोगों पर पड़ता है. लगभग 73000 हेक्टेयर के इस वन क्षेत्र को 9 जून 2014 में टाइगर रिजर्व का दर्जा दिया गया था. तब से अब तक बाघों का कुनबा सरकारी आंकड़ों में 24 से बढ़कर 72 हो गया है. वहीं जानकारों के मुताबिक बाघों की वास्तविक संख्या 100 को पार कर गई है.
मात्र 20 से 25 बाघों के लिए पर्याप्त जगह
पीलीभीत जिले में बीते 30 सालों से पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ वन्यजीव पत्रकार केशव अग्रवाल बताते हैं कि पीलीभीत में बाघों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन इसके साथ ही साथ हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व का तकरीबन 620 स्क्वायर किमी. का कोर फॉरेस्ट एरिया इतने बाघों को सुरक्षित आवास देने के लिए नाकाफी है. वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो इतना कोर फॉरेस्ट एरिया महज 20 से 25 बाघों के लिए ही पर्याप्त है.
10 साल में 3 गुना बढ़ी बाघों की आबादी
वहीं PTR में बाघों की कुल संख्या क्षमता से 3 गुना से भी अधिक है. यही कारण है कि आए दिन पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघ आबादी का रुख कर रहे हैं. वहीं पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे अधिकांश इलाकों में अब भी गन्ने, धान, गेहूं जैसी फसलों को उगाया जाता है. चूंकि बाघ इन फसलों और नरकुल के घास में अंतर करने में सक्षम नहीं है तो ऐसे में जंगल में टेरिटरी न बना पाने वाले बाघ इन खेतों में टेरिटरी बना लेते हैं. इसके अलावा जंगल में इंसानी दखल के चलते होने वाला व्यवधान व पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानवीय संसाधनों की कमी भी इसका एक बड़ा कारण है.
करने होंगे लॉन्ग और शॉर्ट टर्म उपाय
केशव अग्रवाल बताते हैं कि यह लंबे अरसे से चली आ रही समस्या है. इन परिस्थितियों पर काबू पाने के लिए भी दूरदर्शी कदम उठाने होंगे. अगर फौरी तौर पर इस समस्या से निपटने की बात की जाए तो फिलहाल बाघों का तराई जैसे वन क्षेत्रों में ट्रांस्लोकेशन ही एकमात्र उपाय है. वहीं अगर दूरदर्शी उपायों की बात करें तो पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे इलाकों में परंपरागत खेती की बजाए लेमन ग्रास, तुलसी, सतावरी जैसी सैकड़ों जड़ी-बूटियों की खेती की जा सकती है. इससे बाघों के आबादी में आने की समस्या से तो निजात मिलेगा ही वहीं किसानों को भी इससे मोटा मुनाफा होगा.
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FIRST PUBLISHED : March 30, 2024, 22:07 IST