Lok Sabha Election 2024 in Western UP: इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दंगल में नए दांव-पेंच देखने को मिलेंगे. कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो राजनीतिक बयार बहती है वही पूरब तक जाती है. इस राजनीतिक बयार को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियां जोर आजमाइश कर रही हैं. 2014 और 2019 से इतर इस बार के चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण साधकर भारतीय जनता पार्टी ने नया दांव चल दिया है. उत्तर प्रदेश में इस बार राष्ट्रीय लोक दल- रालोद और भाजपा का गठबंधन है. इस राजनीतिक गठबंधन से पश्चिमी यूपी के कई मुद्दे रातोंरात ठंडे पड़ गए. ऐसे में विपक्ष इस गठजोड़ का तोड़ निकालने की जुगत में जुटा हुआ है. इस लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा-रालोद गठबंधन में कई जाट नेताओं की अग्निपरीक्षा है तो वहीं समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी में मुस्लिम मतदाताओं को लेकर रेस लगी हुई है.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से पश्चिमी यूपी की 27 सीटों पर चुनाव शुरूआती तीन चरणों में ही लगभग पूरा हो जाएगा. ऐसे में इन सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने के लिए सभी दलों ने मशक्कत शुरू कर दी है. बीजेपी पश्चिमी यूपी की 27 सीटों पर अभी सबसे ज्यादा ध्यान लगाए हुए है. कारण साफ है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से 24 सीटें जीती थीं. 2019 के चुनाव में बीजेपी को यहां झटका लगा था और केवल 19 सीटें ही जीत पाई. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने चार-चार सीटें बांट ली थीं. सपा-बसपा के गठबंधन के चलते बीजेपी के नुकसान हुआ था.
इससे सबक लेते हुए बीजेपी ने जाट लैंड के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन का दांव चला है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर 18 प्रतिशत से अधिक जाट वोटर हैं. भाजपा ने भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर जाट वोटरों को साधने के लिए दांव चला. इस चुनाव में भूपेंद्र चौधरी की भी परीक्षा है कि वे भाजपा की उम्मीद पर कितना खरा उतरते हैं. वहीं राष्ट्रीय लोक दल-रालोद मुखिया चौधरी जयंत की अगुवाई में ये पहला लोकसभा चुनाव है लिहाजा उनकी भी अग्निपरीक्षा है.
जाट वोटरों के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की संख्या किसी भी चुनाव का परिणाम बदलने का माद्दा रखती है. सपा-बसपा ने पिछले चुनाव में इसी समीकरण के जरिए आठ सीटें जीती थीं. वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट और मुसलमानों के बीच जो दूरी बढ़ी, वह रालोद के लगातार प्रयास से कम हुई थी. मुस्लिमों ने खुले दिल से रालोद को वोट दिया था. लेकिन इस बार ये समीकरण बिलकुल बदल गया है. राष्ट्रीय लोकदल का बीजेपी के साथ गठबंधन होते ही जाट-मुसलमान का यह समीकरण बिखर गया है. अब मुसमान किसका साथ देंगे, यह अहम सवाल है.
2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नौ सीटों पर बीजेपी की जीत का अंतर 25,000 वोटों से भी कम था. इनमें मेरठ, बागपत और मुजफ्फरनगर की सीट भी शामिल थीं. भाजपा के सामने जहां इस बार इन सीटों को ज्यादा वोटों के अंतर से जीतने की चुनौती है, तो विपक्ष चाहेगा कि इस अंतर को कम करते हुए बाजी मार ली जाए.
अब तक जिन प्रत्याशियों की घोषणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हो चुकी है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जातिगत समीकरणों को साधने के लिए हर पार्टी जोर-आजमाइश कर रही है. सहारनपुर में बसपा से माजिद अली, कैराना में भाजपा से प्रदीप कुमार, सपा से इकरा हसन, मुजफ्फरनगर में भाजपा से संजीव बालियान, सपा से हरेंद्र मलिक, बसपा से दारा सिंह प्रजापति, बिजनौर लोकसभा सीट पर रालोद से चंदन चौहान, सपा से यशवीर सिंह, बसपा से चौधरी बिजेंद्र सिंह, नगीना सीट से भाजपा से ओम कुमार, सपा से मनोज कुमार, रामपुर से भाजपा से घनश्याम लोधी, संभल से भाजपा से परमेश्वर लाल सैनी, अमरोहा से भाजपा से कंवर सिंह तंवर, बसपा से हाजी जमील, मेरठ में सपा से भानु प्रताप सिंह, बसपा से देवव्रत त्यागी और बीजेपी से अरुण गोविल, बागपत में रालोद से डॉ. राजकुमार सांगवान, बसपा से प्रवीण बैंसला, गौतमबुद्धगर में भाजपा से महेश शर्मा, सपा से राहुल अवाना, बुलंदशहर में भाजपा से डॉ. भोला सिंह, अलीगढ़ में सपा से बिजेंद्र सिंह, हाथरस में सपा से जसवीर वाल्मीकि, मथुरा में भाजपा से हेमा मालिनी, आगरा में भाजपा से एसपी सिंह बघेल, बसपा से पूजा अमरोही और बरेली में सपा से प्रवीन सिंह ऐरन चुनावी मैदान में हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 1, 2024, 18:35 IST