कुंदरकी उपचुनाव: भाजपा और सपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई, 18 जनप्रतिनिधियों की सियासी राह दांव पर
मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव को लेकर राजनीति का माहौल काफी गरमाया हुआ है, और यह उपचुनाव दोनों प्रमुख पार्टियों—भा.ज.पा. और सपा—के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। इस सीट पर सपा का वर्चस्व रहा है, और भाजपा ने लंबे समय से इसे जीतने की कोशिश की है।
कुंदरकी उपचुनाव का सियासी महत्व:
कुंदरकी विधानसभा सीट पर सपा का दबदबा पिछले कई चुनावों से रहा है। 1996 से लेकर 2022 तक हुए छह विधानसभा चुनावों में से सपा ने चार बार यह सीट जीती है, जबकि दो बार बसपा ने जीत दर्ज की। भाजपा को 1993 में एकमात्र जीत मिली थी, और अब पार्टी की कोशिश है कि वह इस 31 साल के सूखे को खत्म करे। भाजपा ने इस सीट पर अपनी जीत के लिए काफी बड़ा दांव खेला है, और पार्टी के कई बड़े नेता इस चुनाव में सक्रिय रूप से जुटे हैं।
भाजपा का संघर्ष:
भा.ज.पा. ने इस बार अपनी पूरी ताकत झोंकी है और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, तीन मंत्री और कई अन्य प्रमुख नेता चुनाव प्रचार में लगे हैं। भूपेंद्र सिंह के लिए तो यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनका गृह क्षेत्र है और मुरादाबाद जिले में पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा के चार मंत्री—जसवंत सैनी, धर्मपाल सिंह, जेपीएस राठौर और गुलाब देवी—भी पार्टी के उम्मीदवार रामवीर सिंह के पक्ष में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं।
सपा की रणनीति:
वहीं सपा भी कुंदरकी में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए पूरा जोर लगा रही है। पार्टी ने आठ प्रमुख जनप्रतिनिधियों को चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी दी है, जिनमें चार सांसद और चार विधायक शामिल हैं। सपा के लिए यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि सपा ने यह सीट जीत ली, तो हाजी रिजवान की यह चौथी जीत होगी, जो उनके राजनीतिक कद को और मजबूत करेगा।
भीतरघात और विरोध:
चुनाव में जितनी जोर-शोर से प्रचार हो रहा है, उतनी ही तेज भीतरघात की सियासत भी सामने आ रही है। दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को अपने ही दल के भीतरघात से जूझना पड़ रहा है। कई नेताओं ने अपने विरोधियों के खिलाफ शिकायतें और सबूत प्रदेश नेतृत्व तक भेजे हैं। व्हाट्सएप पर चल रही ये सियासत बताती है कि चुनावी संघर्ष सिर्फ पार्टी के बाहर नहीं, बल्कि भीतर भी है।
समग्र परिप्रेक्ष्य:
कुंदरकी उपचुनाव सिर्फ इस सीट के लिए नहीं, बल्कि सपा और भाजपा दोनों के लिए एक अहम राजनीतिक संकेत बन चुका है। सपा के लिए यह अपनी पकड़ को बनाए रखने की लड़ाई है, जबकि भाजपा के लिए यह अपनी कड़ी मेहनत का फल प्राप्त करने और सपा के वर्चस्व को चुनौती देने का एक मौका। मतदान की तारीख 20 नवंबर को होने वाली है, और इसके बाद जो परिणाम आएंगे, वह मुरादाबाद जिले और प्रदेश की सियासत में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।