किसान आंदोलन: जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन 65वें दिन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, 13 फरवरी को महापंचायत की तैयारी

किसान आंदोलन: जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन 65वें दिन, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, 13 फरवरी को महापंचायत की तैयारी

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल । - Dainik Bhaskar

पंजाब और हरियाणा में पिछले एक साल से चल रहा है, और अब यह सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पहुंच चुका है। खनौरी और शंभू बॉर्डर पर चल रहे इस आंदोलन के केंद्र में किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का अनशन है, जो इस समय 65वें दिन में प्रवेश कर चुका है। उन्होंने साफ किया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, उनका अनशन जारी रहेगा। उनकी स्थिति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, और मेडिकल टीम उन्हें जरूरी मदद प्रदान कर रही है।

डल्लेवाल का यह अनशन केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं, बल्कि यह पूरे किसान आंदोलन की प्रतीक बन गया है। उनका कहना है कि जब तक सरकार उनकी मांगों को मानकर समाधान नहीं निकालती, तब तक वह अपना संघर्ष जारी रखेंगे। उनका संदेश किसानों और मोर्चे के नेताओं तक पहुंचा है कि आंदोलन जारी रहेगा, और 13 फरवरी को इस संघर्ष के एक साल पूरे होने के मौके पर किसानों द्वारा तीन महापंचायतें आयोजित की जाएंगी।

इस आंदोलन की शुरुआत 13 फरवरी 2024 को हुई थी, जब किसानों ने फसलों की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) समेत 13 अन्य मांगों को लेकर संघर्ष शुरू किया था। शुरुआत में सरकार ने कुछ कदम उठाए थे, लेकिन जब किसानों को कोई समाधान नहीं मिला, तो उन्होंने दिल्ली जाने का निर्णय लिया। हरियाणा सरकार ने किसानों को रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाए, और इस दौरान खनौरी बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच झड़प में एक किसान की मौत हो गई।

इस आंदोलन का मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में गया, और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर एक हाई पावर कमेटी बनाई। पिछले साल नवंबर में, डल्लेवाल ने अनशन शुरू किया था, और इसके बाद 50 दिनों तक संघर्ष जारी रहा। हालांकि, जब केंद्र सरकार ने किसानों से मीटिंग के लिए संपर्क किया, तो डल्लेवाल ने अनशन जारी रखने का निर्णय लिया, लेकिन चिकित्सकीय मदद लेने का भी फैसला किया। इसके बाद, 26 जनवरी को पूरे देश में ट्रैक्टर मार्च आयोजित किया गया।

फिलहाल, यह संघर्ष सिर्फ किसानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। डल्लेवाल और अन्य किसानों के साहसिक कदम ने न केवल आंदोलन को गति दी है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि जब तक उनकी आवाज नहीं सुनी जाती, तब तक वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे।

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