निर्मल कुमार राजपूत /मथुरा: यूपी के मथुरा में जन्मा एक बच्चा IAS का एग्जाम पास करने के बाद इंटरव्यू के लिए जाता है. इंटरव्यू से पहले उसके साथ हादसा हो जाता है. इस हादसे में उसके सपने टूट जाते हैं. फिर होती है नयी जिंदगी की शुरुआत. खुद तो IAS अधिकरी नहीं बन सके, लेकिन आज सैकड़ों स्टूडेंट्स को अधिकारी बनाकर एक कीर्तिमान हासिल किया है.
ट्रेन हादसा भी नहीं डिगा सका माधव का हौसला
‘रात नहीं ख्वाब बदलता है, मंजिल नहीं कारवां बदलता है, जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि, किस्मत बदले न बदले , पर वक्त जरुर बदलता है.’ ये कहावत बिलकुल सटीक साबित होती है डॉ. ब्रजराज माधव पर. एक दुःखद हादसे से गुजरने के बाद उन्होंने हार नहीं मानी. IAS तो नहीं बन से लेकिन अपनी मेहनत और कठोर परिश्रम से सैकड़ों छात्र – छात्राओं को ये अधिकारी बना चुके हैं. 1978 में जन्मे ब्रजराज माधव ने बताया कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा मथुरा से हुई और कर्मभूमि दिल्ली बनी.
दोनों पैर हो गए थे खराब
यहां उन्होंने IAS की तैयारी की, लेकिन दो अटेम्प्ट में यह सेलेक्ट नहीं हो पाए. तीसरी बार जब इन्होंने IAS का एग्जाम दिया, तो रैंक के साथ इन्होंने एग्जाम भी पास कर लिया. उन्होंने बताया कि इंटरव्यू के लिए जा रहा था और ट्रेन में सफर करने के दौरान MST पास वाले लड़कों में आपस में कहासूनी हुई. अचानक मुझे धक्का लग गया. धक्का लगने के साथ ही वो ट्रैन और स्टेशन के बीच आ गया. उस हादसे में दोनों पैर खराब हो गए. ढाई महीने बाद उन्हें होश आया तो वह आयोग के अधिकारियों से इंटरव्यू के लिए रिक्वेस्ट करने पहुंचे. आयोग के अधिकारियों ने इंटरव्यू करने से साफ मना कर दिया.
दृढ निश्चय और मेहनत लायी रंग
अपनी स्ट्रगल की कहानी बताते हुए ब्रजराज माधव कहते हैं कि 2008 में कोचिंग की शुरुआत की. एक दृढ़ निश्चय कर लिया. वो कहते हैं, ‘मैं भले ही आईएएस अधिकारी नहीं बन पाया. कोचिंग में पढ़ने वाले प्रत्येक बच्चे को किसी न किसी विभाग में एक अच्छे पद पर तैनाती मेहनत के जरिए दिलाऊंगा. दो बृजराज ने यह भी बताया कि मेरे पढ़ाई हुए छात्र-छात्राएं आईएएस, पीसीएस, इंस्पेक्टर, लेफ्टिनेंट, कर्नल बन चुके हैं. उन्हें यही शिक्षा दी कि किसी न किसी व्यक्ति की मदद वह अपनी तरफ से जरूर करें.
दे रहे हैं निशुल्क शिक्षा
कैरियर प्लस कोचिंग के संचालक डॉक्टर ब्रजराज माधव ने यह भी बताया कि जो बच्चे बच्चियों आर्थिक रूप से कमजोर हैं. मैं उन्हें नि:शुल्क शिक्षा देता हूं. जो छात्र अच्छे पदों पर तैनात हैं. उन्हें यही संस्कार दिए हैं कि वह किसी न किसी गरीब बच्चों की अपनी तरफ से मदद करें. उन्होंने कहा कि ₹200 घंटे के हिसाब से बच्चों को पढ़ाता हूं. किसी के पास फीस नहीं होती तो उसे अपने पास से फीस देकर पढ़ा देता हूं. मुझे अच्छा लगता है कि मैं किसी के काम आ सकूं. मैं सौभाग्यशाली समझता हूं अपने आपको.
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FIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 11:08 IST