आंवला लगाना है तो अभी से शुरू करें तैयारी, विटामिन सी का है सर्वश्रेष्ठ स्रोत, जानें कौन सा किस्म है बेस्ट

अभिनव कुमार/दरभंगा: कोविड महामारी के दौर में जब लोगों की रोग प्रतिरोधक छमता में भारी कमी आई थी. उस समय विटामिन सी की चर्चा हर तरफ हो रही थी, क्योंकी विटामिन सी लेने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. हम सभी जानते है की नीम्बू वर्गीय फलों में विटामिन सी बहुत ज्यादा पाया जाता है , उस समय नीम्बू , संतरा का भाव आसमान छू रहा था. बतातें चलें की सबसे ज्यादा विटामिन सी आंवले में पाया जाता है. तक़रीबन 20 नीम्बू के बराबर विटामिन सी एक आवले के फल में पाया जाता है.

इस पर विस्तृत जानकारी देते हुए प्रोफेसर डॉ. एसके सिंह विभागाध्यक्ष,पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी एवं नेमेटोलॉजी, प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना, डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, बताते है कि आंवला का पेड़ लगाने के तीसरे वर्ष से प्रति वर्ष कम से कम 15 किलोग्राम आंवला का फल प्रति पेड़ प्राप्त होने लगेगा, चौथे साल 30 किग्रा ,इस तरह से हर साल लगभग 15 किलोग्राम उपज में वृद्धि होगी. इस प्रकार से 7 वे साल में एक पेड़ से 75 से 80 किग्रा आंवला प्राप्त होगा. आंवले का फल, पाचन तंत्र के सभी रोगों को दूर करता है.

तापमान तक सहन करने की क्षमता
आंवला एक शुष्क उपोष्ण (जहां सर्दी एवं गर्मी स्पष्ट रूप से पड़ती है) क्षेत्र का पौधा है. परन्तु इसकी खेती उष्ण जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है. पूर्ण विकसित आंवले का वृक्ष 0 से 46 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तक सहन करने की क्षमता रखता है. गर्म वातावरण, पुष्प कलिकाओं के निकलने हेतु सहायक होता है. जबकि जुलाई से अगस्त माह में अधिक आर्द्रता का वातावरण सुसुप्त छोटे फलों की वृद्धि हेतु सहायक होता है. वर्षा ऋतु के शुष्क काल में छोटे फल अधिकता में गिरते हैं. तथा नए छोटे फलों के निकलने में देरी होती है. आंवला की खेती बलुई मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी तक में सफलता पूर्वक किया जा सकता है.

मई में इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए
आंवला की खेती के लिए गड्ढो की खुदाई 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट पर की जाती है, पौधा लगाने के लिए 1 घन मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए. गड्ढों को 15-20 दिनों के लिए धूप खाने के लिए छोड़ देना चाहिए. इसके बाद प्रत्येक गड्ढे में 20 किलोग्राम वर्मी कम्पोस्ट या कम्पोस्ट खाद, 1-2 किलोग्राम नीम की खली और 500 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाना चाहिए. गड्ढा भरते समय 70 से 125 ग्राम क्लोरोपाईरीफास डस्ट भी भरनी चाहिए. मई में इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए.गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही पौधे का रोपण किया जाना चाहिए.

रेशा एवं एकान्तर फल की समस्या
पहले आंवला की तीन प्रमुख किस्में यथा बनारसी, फ्रान्सिस (हाथी झूल) एवं चकैइया हुआ करती थीं. इन किस्मों के अपने गुण एवं दोष हैं. बनारसी किस्म में फलों का गिरना एवं फलों की भण्डारण क्षमता कम होती है, जबकि फ्रान्सिस किस्म में यद्यपि बड़े आकार के फल लगते हैं. परन्तु उसमे क्षय रोग अधिक होता है. चकैइया के फलों में अधिक रेशा एवं एकान्तर फल की समस्या के कारण इन किस्मों के रोपण की सलाह नहीं दी जाती है.

3 आंवले की किस्मों के पौधों को लगाना चाहिए
नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, फैजाबाद द्वारा आवले की कई प्रजातियों को विकसित किया है. इन प्रजातियों के खासियतों के चलते किसानों ने इन्हें ज्यादा पसंद किया है. यथा नरेन्द्र-6 (एनए- 6) , नरेन्द्र-7 (एनए- 7), नरेन्द्र- 9 (एनए- 9), और नरेन्द्र- 10 (एनए-10), कृष्णा (एन ए- 4), कंचन (एन ए- 5), बीएसआर -1 (भवाणीसागर) आदि प्रमुख है. आंवला में पर परागण होता है. इसलिए अधिकतम उपज के लिए 2: 2: 1 के अनुपात में कम से कम 3 आंवले की किस्मों के पौधों को लगाना चाहिए. उदाहरण के लिए , एक एकड़ में, बेहतरीन परिणाम के लिए नरेन्द्र-7 के 80 पौधे , कृष्णा के 80 पौधे और कंचन के 40 पौधे लगाए जाने चाहिए. आंवला को कमजोर मिटटी में लगाते है. इसलिए भूमि में जैविक पदार्थ एवं पोषक तत्वों का अधिक प्रयोग आवश्यक है.

मार्च में सिंचाई नहीं करनी चाहिए
आंवला लगाने के एक वर्ष के बाद पौधों को 5-10 किग्रा. गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 80 ग्राम पोटाश देना चाहिए. अगले दस वर्षो तक पेड़ की उम्र से गुणा करके खाद एवं उर्वरकों का निर्धारण करते है. इस प्रकार दसवें वर्ष में दी जाने वाली खाद एवं उर्वरक की मात्रा 50-100 कुन्तल सड़ी गोबर की खाद, 1 किग्रा नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फोरस तथा 800 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ होगी. पहली सिंचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद करनी चाहिए. उसके बाद आवश्यकतानुसार पौधों को गर्मियों में 7-10 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए. फलत प्रारम्भ हो जाने पर सुसुप्तावस्था (दिसम्बर- जनवरी) में तथा फूल आने पर मार्च में सिंचाई नहीं करनी चाहिए. निराई-गुड़ाई पौधों को स्वस्थ रखने एवं खाद तथा उर्वरकों को दुरूपयोग से बचाने के लिए समय-समय पर खरपतवार निकालकर थाले की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए.

कौन सा पेड़ कब देता है फल?
आंवला का कलमी पौधा रोपण से तीसरे साल तथा बीजू पौधा 6 से 8 साल बाद फल देना प्रारम्भ कर देता है. कलमी पौधा 10 से 12 साल बाद पूर्ण फलन देने लगता है. तथा अच्छे प्रकार से रख-रखाव के द्वारा 50 से 60 साल तक फलन देता रहता है. आंवला की विभिन्न किस्मों की उपज में भिन्नता पायी जाती है. बनारसी कम फलन देने वाली, फ्रान्सिस एवं नरेन्द्र आंवला- 6 औसत फलन देने वाली, कंचन एवं नरेन्द्र आंवला- 7 अत्यधिक फलन देने वाली किस्में हैं. आंवले की फलन को कई कारक प्रभावित करते हैं, जैसे किस्म की आन्तरिक क्षमता, वातावरणीय कारक एवं प्रबंधन तकनीकें इत्यादि. एक पूर्णविकसित आंवले का वृक्ष एक से तीन क्विंटल फल देता है. इस प्रकार से 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त किया जा सकता है.

Tags: Darbhanga news, Local18

Source link

Leave a Comment

और पढ़ें

  • JAPJEE FAMILY DENTAL CLINIC
  • Ai / Market My Stique Ai
  • Buzz Open / Ai Website / Ai Tool