इंदौर: भारत में पान-सुपारी के साथ तंबाकू और गुटखा का सेवन करने वालों की संख्या ज्यादा है, इसलिए आए दिन लोगों में मुंह के कैंसर के मामले सामने आते हैं. क्योंकि सुपारी के साथ तंबाकू का सेवन कमजोर व्यक्तियों में मुंह से जुड़े स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं पैदा करता है, जिसे लेकर आईआईटी इंदौर में शोध किया गया. मुंह के कैंसर को लेकर आईआईटी इंदौर के शोध में पता चला कि जिन व्यक्तियों की डाइट संतुलित नहीं, उनमें सुपारी के साथ तंबाकू के सेवन से ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस (ओएसएमएफ) प्री कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है.
शोध से इलाज में मदद
बायोसाइंसेस एंड बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हेमचंद्र झा ने टीम के साथ यह शोध किया है. प्रोफेसर झा ने कहा कि इस तरह के अध्ययन से डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को मुंह के कैंसर के शीघ्र निदान के तरीके विकसित करने में मदद मिल सकती है.
मुंह के कैंसर के प्रमुख कारणों का समय रहते पता चल जाए तो शुरुआती चरण में उपचार करके उसे ठीक किया जा सकता है. शोध की मदद से माउथ कैंसर का निदान करने के लिए दवाएं तैयार करने में भी मदद मिलेगी.
विश्वसनीय साबित होगी ये तकनीक
टीम में भौतिक विभाग के प्रोफेसर राजेश कुमार, डॉ. चंचल रानी, छात्र डॉ. तरुण प्रकाश वर्मा, सिद्धार्थ सिंह और सोनाली अधिकारी शामिल रहीं. इसमें प्रोफेसर राजेश कुमार ने कहा कि रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसी विधियां माउथ कैंसर और विभिन्न बीमारियों के शीघ्र निदान के लिए सही अणुओं की पहचान करने में गैर-आक्रामक तरीकों के रूप में काम करेगी. साथ ही स्वास्थ्य केंद्रों में बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग के लिए ये तकनीक तेज और विश्वसनीय भी साबित हो सकती है.
जर्नल आफ रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी में शोध प्रकाशित
बता दें कि ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस (ओएसएमएफ) ओरल प्री कैंसर स्थिति का प्रमुख कारण तंबाकू के साथ सुपारी का सेवन है, जिसमें गालों के लचीलेपन में कमी और मुंह का खुलना कम हो जाता है. इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया तो माउथ कैंसर का रूप ले सकती है. टीम ने ओएसएमएफ के रोग जनन के पीछे का कारण जानने के लिए बायो मोलेकुलर सिस्टम का अध्ययन किया और उन चरणों की पहचान की जिन्हें माउथ कैंसर में इसके परिवर्तन को रोकने के लिए टारगेट किया जा सकता है. इसमें गैर-आक्रामक स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक, रमन माइक्रो स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया, जिसे एफआइएमटी योजना के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा समर्थन दिया है. वहीं, लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री (एलसी-एमएस) के मेटाबोलिक्स और लिपिडोमिक्स जैसे स्थापित रिफाइंड तरीकों का उपयोग करके परिणामों को भी सत्यापित किया है. यह शोध ‘जर्नल आफ रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी’में प्रकाशित किया गया है.
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FIRST PUBLISHED : May 22, 2024, 23:49 IST