यूसीसी को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड, नियम बनाने के लिए कमेटी गठित – News18 हिंदी

देहरादून. उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता (UCC) बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई है. इसके साथ ही अब समान नागरिक संहिता पर कानून बन गया है. बता दें कि, देश की आजादी के बाद UCC लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है. इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने सामान नागरिक संहिता लागू करने के लिए नियमों/उपनियमों को बनाने के लिए 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. हालांकि, नियमावली बनने के बाद उत्तराखंड सरकार द्वारा इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया जाएगा. इसको लेकर सीएम धामी ने प्रदेशवासियों को बधाई भी दी है. कहा, प्रदेश में सामाजिक समानता की सार्थकता को यूसीसी सिद्ध करेगा.

कमेटी में ये 5 सदस्य तय करेंगे नियम

बता दें कि, समान नागरिक संहिता का कानून (UCC) लागू करने के लिए नियम बनाने वाली 5 सदस्यों वाली कमेटी में पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल, अपर पुलिस महानिदेशक अमित सिन्हा और उत्तराखंड के स्थानीय आयुक्त अजय मिश्रा शामिल हैं. यह कमेटी जल्द ही एक बैठक कर यूसीसी कानून लागू करने के लिए जरूरी नियम उप नियम बनाने का काम शुरू करेगी.

6 फरवरी को सीएम धामी ने पेश किया था विधेयक

बता दें कि 6 फरवरी 2024 को विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024 विधेयक पेश कर दिया था. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा सदन में पेश किए गए विधेयक में 392 धाराएं थीं, जिनमें से केवल उत्तराधिकार से संबंधित धाराओं की संख्या 328 थी. चूंकि, समान नागरिक संहिता समवर्ती सूची का विषय है, इस विषय पर राज्य और केंद्र दोनों ही कानून बना सकते हैं. लेकिन समान मुद्दे पर कानून होने पर केंद्र का कानून प्रभावी माना जाता है. इसीलिए इस बिल को उत्तराखंड विधानसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया था.

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कई मुस्लिम संगठनों ने जताई सहमति

सामान्य नागरिक संहिता कानून लागू होने के बाद माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है. कुछ नेताओं का आरोप है कि यह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है, जबकि भाजपा और केंद्र सरकार लगातार इसे सभी वर्गों के लिए समान रूप से उपयोगी और विकास की दिशा में उठाया गया क्रांतिकारी कदम बताती रही है. कई मुस्लिम संगठनों और महिला अधिकार संगठनों ने भी सरकार के रुख से अपनी सहमति जताई है.

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