पड़ोसी देश नेपाल में एक बार फिर अशांति का माहौल है. इसी वजह से नेपाल में एक बार फिर से 2008 में समाप्त की गई राजशाही की बहाली और देश को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की जोरदार मांग हो रही है. कुछ समय पहले राजशाही की बहाली को लेकर नेपाल नरेश के हजारों समर्थकों ने राजधानी काठमांडू में एक मार्च निकालने की कोशिश की थी.
नेपाल में इन दिनों चीन के दखल में तेजी आयी है. नेपाल की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों पर टिकी है. इस बात का चीन ने हमेशा फायदा उठाना चाहा है. जानकारों की मानें तो नेपाल में चीन अपनी मनमर्जी चलाना चाहता है. इसके पीछे चीन की सबसे बड़ी चाहत यह है कि नेपाल और भारत के बीच रिश्ते बिगड़ जाएं. चीन की ही चालबाजियों के कारण नेपाल में हमेशा एक अशांत सरकार रही है. लेकिन नेपाल का एक वर्ग चीन को अपने देश से बाहर फेंक देना चाहता है.
नेपाल की जनता में है बैचेनी
राजनीतिक दलों और राजनेताओं के भ्रष्ट आचरण के कारण स्थानीय जनता पीड़ित है. हवाई अड्डे और राजमार्ग चीन को बेच दिए गए हैं. स्थानीय जनता चाहती है कि नेपाल एक आदेश और नियंत्रण यानी उनके राजा के अधीन चले. वे एक हिंदू राज्य चाहते हैं, न कि ऐसा राज्य जो उपनिवेश के रूप में चीन के निकट हो. नेपाल के लोगों में बैचेनी है, क्योंकि यह चारों तरफ से दूसरे देशों की जमीन से घिरा देश है और बाकी दुनिया पर निर्भर है.
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2008 में खत्म हुई थी राजशाही
नेपाल में 240 सालों से चली आ रही राजशाही का 2008 में खात्मा हो गया था. करीब दस सालों तक चले गृहयुद्ध के बाद देश में शाह राजवंश के हाथों से देश की सत्ता जाती रही. इसके बाद माओवादी देश की राजनीति की मुख्य धारा में शामिल हुए. मई 2008 में नेपाल के वामपंथी दल को चुनाव में जीत मिली. तब तत्कालीन नरेश ज्ञानेंद्र को अपदस्थ कर देश को गणतंत्र घोषित कर दिया गया. इस तरह नेपाल राष्ट्रपति के राज्य प्रमुख के रूप में गणतंत्र बन गया. तब से ज्ञानेंद्र बिना किसी शक्ति या राज्य संरक्षण के एक सामान्य नागरिक के रूप में रह रहे हैं. उन्हें अभी भी लोगों के बीच कुछ समर्थन हासिल है. प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की कि नेपाल को वापस हिंदू राज्य बनाया जाए. हिमालयी राष्ट्र को 2007 में एक अंतरिम संविधान द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था.
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शाही परिवार के 9 लोगों की हत्या
नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग के बीच शाही परिवार में घटी दिल दहलाने वाली घटना के बारे में भी जान लीजिए. एक जून 2001 को राजमहल में भीषण गोलीबारी हुई. इस घटना में शाही परिवार के 9 सदस्यों को गोली मार दी गई थी. गोली चलाने वाला कोई और नहीं शाही परिवार का बेटा था, जो आने वाले समय में राजा की गद्दी पर विराजमान होता. हकीकत में यह घटना जितनी सीधी नजर आ रही है, उतनी है नहीं. नारायणहिती पैलेस में हुए कत्लेआम के कई सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं.
शाही परिवार जो नारायणहिती पैलेस में हुई गोलीबारी में मारा गया.
दीपेंद्र ने नशे में चलाईं गोलियां
22 साल पहले नारायणहिती पैलेस के त्रिभुवन सदन में एक पार्टी चल रही थी, जिसमें महाराज वीरेंद्र, महारानी ऐश्वर्या समेत शाही परिवार के एक दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद थे. पार्टी की मेजबानी प्रिंस दीपेंद्र कर रहे थे. दीपेंद्र काफी नशे में आ गए तो उन्हें उनके कमरे में पहुंचा दिया गया. करीब रात आठ दीपेंद्र सेना की वर्दी और काले दस्ताने पहनकर अचानक कमरे से बाहर आए. उनके एक हाथ में एमपीज5के सबमशीनगन और दूसरे में कोल्ट एम-16 राइफल थी. उनकी वर्दी में 9 एमएम पिस्टल लगी थी. दीपेंद्र ने महाराज वीरेंद्र की ओर सबमशीनगन का मुंह करके ट्रिगर दबा दिया. कुछ ही मिनटों में वहां परिवार के कई लोगों की लाशें बिछ चुकी थीं.
दीपेंद्र ने क्यों दिया इस घटना को अंजाम
उसके बाद दीपेंद्र हॉल से बाहर गार्डन में निकल गए. उनकी मां महारानी ऐश्वर्या और दीपेंद्र के छोटे भाई निराजन उनके पीछे भागे. दीपेंद्र ने उन्हें भी गोलियां मार कर ढेर कर दिया.जिसके बाद दीपेंद्र ने गार्डन में तालाब के पास खुद को भी गोली मार ली. महाराज वीरेंद्र और प्रिंस दीपेंद्र की मौत के तीन दिन बाद ज्ञानेंद्र नेपाल के राजा बने. एक रिपोर्ट के अनुसार दीपेंद्र देवयानी से शादी करना चाहते थे, लेकिन उनके पिका वीरेंद्र को यह मंजूर नहीं था.वहीं, देवयानी के परिवार को भी यह रिश्ता मंजूर नहीं था. दीपेंद्र को खर्च करने के लिए मनमाने पैसे भी नहीं मिल रहे थे. देवयानी से शादी के बाद उन्हें राजपरिवार से बेदखल करने की धमकी भी दी गई थी. जिसकी वजह से दीपेंद्र काफी निराश थे. इसी हताशा में उन्होंने हत्याकांड को अंजाम दिया.
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FIRST PUBLISHED : March 13, 2024, 15:35 IST