जब चीफ जस्टिस का हुआ चमगादड़ों से सामना, डर से छूट गया था पसीना; बड़ी मुश्किल से छूटा पीछा

‘ए सूटेबल ब्वॉय’ जैसे उपन्यास के लेखक विक्रम सेठ (Vikram Seth) की मां लीला सेठ (Leila Seth) हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. पहले उनकी दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्ति हुई. यहां कुछ दिन कार्यवाहक चीफ जस्टिस भी रहीं. फिर हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बन गईं. जज बनने से पहले लीला सेठ ने लंबे समय तक तमाम हाईकोर्ट में वकालत भी की थी. सेठ ने अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत’ में वकालत के दिनों के तमाम किस्से साझा किये हैं. ऐसा ही एक किस्सा तब का है, जब वो पटना हाईकोर्ट में वकालत करने पहुंचीं.

सेठ लिखती हैं कि साल 1958 में मैं कलकत्ता (अब कोलकाता) से पटना आ गई और पटना हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की शुरुआत की. उन दिनों पटना हाई कोर्ट में सिर्फ दो महिला वकील थीं. जिनमें से एक जस्टिस मैं थी और दूसरी धर्मशिला लाल थीं, जो मशहूर क्रिमिनल लॉयर थीं. लाल मूल रूप से बिहार की ही रहने वाली थीं और उनके पिता केपी जायसवाल जानेमाने इतिहासकार थे.

एडवोकेट धर्मशिला लाल का वैवाहिक जीवन बहुत कष्टप्रद रहा था, इसलिए वह काफी सख्त बन गई थीं. बिल्कुल निर्भीक थीं और पटना में हर कोई उन्हें नाम से जानता था. जब कोई जज उनकी बात नहीं सुनता तो चूड़ियां खनकाने में कोई हिचक नहीं करतीं.

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पटना पहुंचीं तो क्या हुआ?
लीला सेठ लिखती हैं कि पटना पहुंचने के बाद में पीआर दास के चेंबर से जुड़ना चाहती थी. वह पटना हाई कोर्ट के मशहूर वकीलों में थे. बेहद तेज-तर्रार और प्रभावशाली शख्सियत वाले व्यक्ति थे. उनकी आवाज जितनी मधुर थी, कानूनी समझ उतनी ही पैनी. लेकिन मैं जब तक दास के चेंबर से जुड़ती, तब तक मुझे आगाह कर दिया गया था कि उनकी नज़रें लड़कियों पर ज्यादा मेहरबान रहती हैं. इसलिए मैंने उनसे किनारा कर लिया और एक दूसरे वकील केडी चटर्जी के चेंबर से जुड़ गई, जो दीवानी, संवैधानिक और कंपनी मामलों को देखा करते थे.

लीला सेठ ने जब पटना हाई कोर्ट जाना शुरू किया तो वहां चर्चा का विषय बन गईं. उन दिनों वहां एक बैरिस्टर एसोसिएशन और एक एडवोकेट एसोसिएशन हुआ करती थी. बैरिस्टर एसोसिएशन की लाइब्रेरी बहुत आरामदायक और बड़ी थी, जहां शांति से काम किया जा सकता था. जबकि एडवोकेट एसोसिएशन की लाइब्रेरी भीड़ भाड़ और शोरगुल वाली थी. बकौल सेठ, वो बैरिस्टर एसोसिएशन की सदस्य थीं, जबकि उनके सीनियर चटर्जी एडवोकेट एसोसिएशन के. इसलिए वो दोनों जगह आ-जा पाती थीं.

वकील पूछते थे अजीब सवाल
प्रैक्टिस के दौरान सेठ के अजीब समस्याएं झेलनी पड़ीं. तमाम वकील उनकी हर हरकत पर नजर रखने लगे. जैसे- वो क्या पहन रही हैं, कहां जाती हैं, किससे मिलती हैं आदि. सेठ लिखती हैं कि एक बार तो एक वकील ने मुझसे पूछ लिया कि मैं खास तरह के ब्लाउज ही क्यों पहनती हूं? वकीलों के साथ-साथ क्लर्क भी इन सब चीजों में बहुत रूचि लेते थे. सेठ लिखती हैं कि उन दिनों पटना हाई कोर्ट में एक एडवोकेट थे ललित मोहन शर्मा, जो आगे भारत के चीफ जस्टिस भी बने. उन दिनों वह लंदन गए थे. जब लंदन से लौटे तो उनके क्लर्क ने उन्हें सबसे पहले बताया कि हाईकोर्ट में एक महिला ने प्रैक्टिस शुरू की है.

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बाथरूम में चमगादड़ों का बसेरा
सेठ लिखती हैं कि मैंने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया और प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिसके बारे में सोचा नहीं था. पटना हाई कोर्ट में महिलाओं के लिए टॉयलेट की व्यवस्था थी ही नहीं. टॉयलेट के लिए थोड़ी दूर स्थित एक पुराने से स्टोर रूम का इस्तेमाल किया जाता था. इसमें ताला लगा रहता और इसकी चाबी दूसरी महिला एडवोकेट धर्मशिला लाल के पास रहती थी. मेरे आने के बाद तय किया गया कि चाबी लाइब्रेरियन खादिम को दे दी जाएगी. चूंकि धर्मशिला को इस व्यवस्था की आदत नहीं थी, इसलिए कई बार वह चाबी लौटाना भूल जातीं. कई बार तो ऐसी नौबत आती कि मुझे कोर्ट रूम में उन्हें ढूंढ कर उनके पर्स से चाबी निकलवानी पड़ती.

जिस स्टोर रूम को बाथरूम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, वह कमरा चमगादड़ों से भरा रहता. सेठ लिखती हैं कि टॉयलेट के नाम पर ही मैं आतंकित हो जाती थी. मैंने सुन रखा था कि अगर चमगादड़ किसी के सिर पर बैठ जाए तो वह शख्स गंजा हो जाता है, इसलिए जब मैं टॉयलेट जाती तो डर के नाते अपने पूरे सिर को साड़ी से अच्छी तरह ढंक लेती. वह कमरा काफी अंधेरा और बेकार फाइलों से भरा था. जैसे ही दरवाजा खुलता, चमगादड़ उड़ना शुरू कर देते.

कैसे मिली चमगादड़ों से मुक्ति?
जस्टिस सेठ लिखती हैं कि शुरू में तो कुछ दिन मैंने मैनेज किया, लेकिन मेरा डर बढ़ता गया. इसके बाद मैंने एक दिन एडवोकेट धर्मशिला से इस बारे में बात की. जैसे ही मैंने उनसे अपना डर साझा किया, वह मुझे अजीब तरीके से देखने लगीं. कहा- अगर तुम्हें चमगादड़ों से डर लगता है तो बिहार में रहकर अच्छी प्रैक्टिस करने का इरादा कैसे रख सकती हो? यह सुनकर मैं हक्का-बक्का रह गई. पर मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया. फिर मैंने बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव के सामने यह मामला उठाया. तब जाकर उस कमरे से फाइलों और चमगादड़ों से निजात मिली.

Tags: Bats, Chief Justice, Patna high court

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