रोहित भट्ट/ अल्मोड़ा. उत्तराखंड के कुमाऊं की होली (Holi 2024) में चीर या फिर निशान बंधन का अपना विशेष महत्व है. एकादशी के दिन से चीर बंधन किया जाता है. चीड़ के पेड़ को पंया वृक्ष भी कहा जाता है. भगवान के रूप में पंया की पूजा की जाती है. चीड़ के नीचे लोग पूजा-अर्चना करते हैं और सुबह-शाम दीया भी जलाते हैं. कई जगह लोग इस पेड़ के नीचे होली गायन भी करते हैं.
होली के अवसर पर चीड़ के पेड़ को गली मोहल्ले में लगाया जाता है. इसके अलावा लोग इसकी टहनी को घर में भी लेकर जाते हैं, जिसमें लोगों के द्वारा विभिन्न तरीके के रंग बिरंगे कपड़े के टुकड़े भी लगाए जाते हैं. होलिका दहन में इसका विशेष महत्व है. अलग-अलग जगह लगाए गए चीड़ के पेड़ के नीचे रंगोली बनाई जाती है और सजाया जाता है, जिन्हें लोग भगवान की तरह पूजते हैं. चीर बंधन के बाद खड़ी होली का गायन घर-घर और मोहल्लों में जाकर किया जाता है.
सदियों पुरानी है चीर बंधन की परंपरा
धार्मिक मामलों के जानकार अल्मोड़ा निवासी त्रिभुवन गिरी महाराज ने लोकल 18 को बताया कि होली पर वर्षों से चीर बंधन की परंपरा चली हुई आ रही है. गली-मोहल्ले में जो स्थान चिन्हित किए जाते हैं, वहां पर चीड़ के पेड़ को लगाया जाता है और सुबह और शाम लोगों द्वारा पूजा-अर्चना और दीया जलाया जाता है.
औषधीय गुणों से भरपूर चीर का पेड़
त्रिभुवन गिरी महाराज ने आगे कहा कि इसके अलावा कई जगह लोग चीड़ के नीचे खड़ी होली का गायन भी करते हैं. चीड़ के पेड़ को पंया का पेड़ भी कहा जाता है. भगवान के रूप में लोग इसकी पूजा अर्चना भी करते हैं और इसमें कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. मोहल्ले में लगाई जाने वाली चीर पर लोग रंग-बिरंगे कपड़े के टुकड़े भी लगाते हैं और इसके आसपास लोगों के द्वारा खूबसूरत रंगोली भी बनाई जाती है.
.
Tags: Almora News, Dharma Aastha, Local18, Religion 18, Uttarakhand news
FIRST PUBLISHED : March 22, 2024, 17:33 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.