जस्टिस लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. पहले वह दिल्ली हाईकोर्ट में नियुक्त हुईं, फिर साल 1991 में उनका बतौर चीफ जस्टिस हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ट्रांसफर हो गया. शिमला में उन्हें बतौर चीफ जस्टिस जो सरकारी आवास मिला उसका नाम था ‘आर्म्सडेल’. इस बंगले को साल 1860 में अंग्रेजों ने वायसराय के सेक्रेटरी आर्म्सडेल के लिए बनवाया था. लीला सेठ अपनी आत्मकथा ‘घर और अदालत’ में लिखती हैं कि ‘आर्म्सडेल’ से थोड़ा उपर पीटरहॉफ है, जिसमें कभी वायसराय रहा करते थे. जबकि उनके बंगले के ठीक नीचे ‘आर्म्सडेल’ में उनके सेक्रेटरी का ठिकाना था.
अचानक पीछे लग गया AK-47 से लैस बॉडीगार्ड
1947 में जब भारत आजाद हुआ तब पंडित जवाहर लाल नेहरू गर्मियों में यहां आते और आर्म्सडेल में ठहरते थे. बाद में साल 1971 में इस बंगले को आधिकारिक तौर पर चीफ जस्टिस का आवास बना दिया गया. लीला सेठ लिखती हैं कि चीफ जस्टिस के बंगले आर्म्सडेल से हाईकोर्ट बहुत करीब था. मैं अक्सर कार से जाने के बजाय पैदल जाती थी. मैं इसे हिल स्टेशन पर रहने का आनंद समझती थी. मेरा पीएसओ चुपचाप मेरे पीछे-पीछे चलता था. हम यही रूटीन फॉलो करते थे.
एक दिन मैंने देखा कि पीएसओ के अलावा एके-47 से लैस एक वर्दीधारी सुरक्षाकर्मी भी मेरे पीछे चल रहा है. मैं थोड़ा चौंक गई क्योंकि सड़क पर आते-जाते हर किसी की निगाह हमारे उपर ठहर जाती.
रजिस्ट्रार ने क्या जवाब दिया?
लीला सेठ लिखती हैं कि कोर्ट पहुंचते ही मैंने रजिस्ट्रार से पूछा यह क्या है? अचानक एके-47 वाले बॉडीगार्ड की जरूरत क्यों पड़ गई? उन्होंने जवाब दिया- ‘मैडम, रेड अलर्ट घोषित किया गया है और आईजी ने आपकी सुरक्षा के लिए स्पेशल गार्ड तैनात किया है…’ मैंने रजिस्ट्रार से कहा कि रोज जिस तरीके से मैं आती थी तब कोई गौर नहीं करता था, पर मेरे पीछे अगर एके-47 से लैस गार्ड चलेगा तब तो मैं किसी भी आतंकी के लिए चलता-फिरता निशाना बन जाऊंगी. शिमला में ज्यादातर लोग नहीं जानते कि मैं कौन हूं. कई बार तो व्यस्त दुकानदार मुझपर चिढ़ते हुए दूसरे काउंटर पर जाने का इशारा कर देते थे. मैं चाहती थी कि मेरे साथ आम लोगों जैसा व्यवहार किया जाए, जिससे कि लोगों और अन्य चीज़ों के संपर्क में रहूं.
लिखित में दिया तब पीछा छूटा
सेठ लिखती हैं कि रजिस्ट्रार ने मेरी राय से आईजी को अवगत करा दिया था, लेकिन मुझे बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी को हटाने में कई दिन लग गए, क्योंकि वे चाहते थे कि ऐसा मैं लिखित में दूं और बाकायदा उसपर मेरे दस्तखत भी हों. ताकि किसी अनहोनी की स्थिति में उन्हें जिम्मेदार न ठहराया जाए.
किस समस्या से घिर गईं चीफ जस्टिस?
लीला सेठ लिखती हैं कि हिमाचल प्रदेश आने के बाद जल्द ही मैं अदालती और प्रशासनिक कामकाज में व्यस्त हो गई, लेकिन यहां पर परेशान करने वाली एक मानवीय समस्या थी. जस्टिस विजय कुमार मेहरोत्रा हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठतम जज थे वे मुझसे उम्र में एक दिन बड़े थे, लेकिन बतौर जज मुझसे चार माह सीनियर थे. साथ ही दो बार कार्यवाहक चीफ जस्टिस रह चुके थे. मुझे बताया गया कि वे इस उम्मीद में थे कि मुझे हिमाचल प्रदेश नहीं भेजा जाएगा और वे चीफ जस्टिस के पद पर बने रहेंगे.
उन्होंने अफवाह सुनी थी कि मैंने दिल्ली से बाहर जाने से इंकार कर दिया है और वे प्रार्थना कर रहे थे कि यह बात सच हो. दूसरी ओर वे यह जानते थे कि उन्हें उनकी उस दरख्वास्त पर इलाहाबाद से शिमला भेजा गया था, जिसमें यह साफ़ कर दिया गया था कि वरिष्ठतम जज होने के बाद वह चीफ जस्टिस बनाने की मांग नहीं करेंगे. उन्हें उम्मीद थी कि उनकी तरक्की सुप्रीम कोर्ट में हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
सेठ आगे लिखती हैं कि जस्टिस मेहरोत्रा बहुत सख्त, मेहनती, विनम्र और ईमानदार व्यक्ति थे, लेकिन जब उनसे जूनियर को चीफ़ जस्टिस बना दिया जाए और वह भी महिला हो तो उनका नाराज होना स्वाभाविक था. मैं उनकी भावनाओं को समझती थी और मुझे इस बात का अहसास था कि उनके लिए यह कितना मुश्किल होगा. मैंने हर फ़ैसले में उन्हें शामिल करने की कोशिश की और कभी भी ऐसी बेंच नहीं गठित की, जिसमें हमें साथ बैठना पड़े और हमारी स्थितियां स्पष्ट हों. उन्होंने भी इसमें सहयोग किया.
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FIRST PUBLISHED : March 9, 2024, 08:56 IST