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किसान संगठनों का दिल्ली कूच: 6 दिसंबर को सरकार के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन

किसान संगठनों का दिल्ली कूच: 6 दिसंबर को सरकार के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन

किसान संगठनों के दो प्रमुख मोर्चों ने घोषणा की है कि वे 6 दिसंबर को दिल्ली कूच करेंगे और इस दौरान केंद्र सरकार के खिलाफ सशक्त विरोध प्रदर्शन करेंगे। किसानों का कहना है कि सरकार ने उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया और वार्ता में कोई प्रगति नहीं हुई है, जिसके बाद उन्होंने यह कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया है।

किसान नेताओं का दावा: सरकार ने सभी रास्ते बंद कर दिए

किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने उनके साथ हर तरह की बातचीत के रास्ते को बंद कर दिया है, और अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है। मोर्चे के नेताओं का कहना है कि वे बड़े लीडरों के नेतृत्व में दिल्ली कूच करेंगे और सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाएंगे। उनका कहना है कि उनका आंदोलन शांतिपूर्वक होगा, लेकिन अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो वे और भी सख्त कदम उठा सकते हैं।

स्वर्ण सिंह पंधेर का आमरण अनशन

किसान मोर्चे के प्रमुख नेता स्वर्ण सिंह पंधेर ने इस आंदोलन को और भी तीव्र करने की घोषणा की है। उन्होंने ऐलान किया कि वे 26 नवंबर से आमरण अनशन पर बैठेंगे, और यह अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक सरकार उनकी मांगों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देती। पंधेर ने कहा कि यह अनशन देशभर के किसानों के लिए एकजुटता और संघर्ष का प्रतीक बनेगा, और वे अपनी मांगों को लेकर किसी भी प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार हैं।

10 दिन का अल्टीमेटम: आंदोलन और बैठकें जारी रहेंगी

किसान संगठनों ने सरकार को 10 दिन का समय दिया है, इस दौरान वे अपनी आंदोलन की रणनीति को और स्पष्ट करेंगे और अन्य राज्यों के साथ भी मीटिंग्स करेंगे, ताकि इस आंदोलन को व्यापक समर्थन मिल सके। इन बैठकों के दौरान वे अपनी मांगों को लेकर और स्पष्ट दिशा-निर्देश देंगे।

राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ने की संभावना

किसान संगठनों के इस निर्णय के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो सकते हैं। किसान आंदोलन न केवल एक सामाजिक मुद्दा बन गया है, बल्कि इससे राजनीतिक सरगर्मियां भी बढ़ सकती हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने पहले ही इस आंदोलन का समर्थन किया है, और आने वाले दिनों में यह विरोध और भी व्यापक रूप ले सकता है।

किसान संगठन अपनी मांगों में सुधार की उम्मीद लगाए हुए हैं, और उनका यह आंदोलन तब तक जारी रहने की संभावना है, जब तक सरकार उनके मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान नहीं देती। यह आंदोलन न केवल पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी तेज हो सकता है, जिससे सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न हो सकती है।

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